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प्रमेयरत्नमालायां
विलसितमिव निखिलमवभासते; विचारासहत्वात् । तथा हि-यत्प्रत्यक्षसत्ताविषयत्वमभिहितम्, तत्र किं निविशेषसत्ताविषयत्वं सविशेषसत्तावबोधकत्वम् वा ? न तावत् पौरस्त्यः पक्षः; सत्तायाः सामान्यरूपत्वात्, विशेषनिरपेक्षतयाऽनवभासनात, शाबलेयादिविशेषानवभासने गोत्त्वानवभासनवत् । 'निविशेष हि सामान्य भवेच्छशविषाणवत्' इत्यभिधानात् । सामान्यरूपत्वं च सत्तायाः सत्सदित्यन्वयबद्धिविषयत्वेन सुप्रसिद्धमेव । अथ पाश्चात्यः पक्षः कक्षीक्रियते, तदा न परमपुरुषसिद्धिः, परस्परव्यावृत्ताकारविशेषाणामध्यक्षतोऽवभासनात् । यदपि साधनमभ्यधायि प्रतिभासमानत्वं तदपि न साधु; विचारासहत्वात् । तथाहि-प्रतिभासमानत्वं स्वतः परतो वा ? न तावत्स्वतोऽसिद्धत्वात् । परतश्चेद्विरुद्धम् । परतः प्रतिभासमानत्वं हि परं विना नोपपद्यते । प्रतिभासनमात्रमपि न सिद्धिमधिवसति, तस्य तद्विशेषानन्तरीयकत्वात् । तद्विशेषाभ्युपगमे च द्वैतप्रसक्तिः ।
हुए मुग्ध पुरुष के वचन विलास के समान प्रतिभासित होता है; क्योंकि यह विचार सह नहीं है। वह इस प्रकार है-जो प्रत्यक्ष सत्ता के विषय के रूप में कहा है, उस वाक्य में क्या सामान्यसत्ता का विषयपना अभीष्ट है या सविशेष सत्ता का अवबोधकपना अभीष्ट है ? प्रथम पक्ष तो बनता नहीं है, क्योंकि सत्ता का सामान्य रूप होता है, वह विशेष की निरपेक्षता से प्रतिभासित नहीं हो सकती, जैसे कि शावलेय आदि विशेषों के न अवभासने पर गोत्व सामान्य भी प्रतिभासित नहीं होता है। कहा भी गया है--विशेष रहित सामान्य गधे के सींग के समान होता है । सत्ता का सामान्य रूप 'सत् सत्', इस प्रकार अन्वय बुद्धि के विषय के रूप में सुप्रसिद्ध ही है। यदि दूसरा पक्ष अंगीकार किया जाता है तो परम पुरुष की सिद्धि नहीं होती है, क्योंकि परस्पर व्यावृत्त आकार वाले विशेषों का प्रत्यक्ष रूप से अवभासन होता है। प्रतिभासमानत्व रूप जो साधन आपने कहा, वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि विचारसह नहीं है। वह इस प्रकार है-प्रतिभासमानपना स्वतः है या परतः ? स्वतः प्रतिभासमानपना नहीं हो सकता है। क्योंकि वह असिद्ध है। परतः प्रतिभासमानपना कहो तो वह विरुद्ध है। परतः प्रतिभासमानत्व दुसरे के बिना नहीं बन सकता। ( पदार्थों का स्वतः प्रतिभासन हो तो नेत्र खोलने पर प्रकाश के अभाव में भी स्वतः प्रतिभासन हो । परन्तु ऐसा नहीं है, अतः हेतु की असिद्धता है एकत्व के विरोधी द्वैत का प्रसाधक होने से विरुद्ध है)। ज्ञान सामान्य भी सिद्धि को प्राप्त नहीं होता है; क्योंकि उसका विशेषों के साथ अविनाभाव पाया जाता है । प्रतिभास
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