Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रमेयरत्नमालायां
स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम् ॥१॥
प्रकर्षेण संशयादिव्यवच्छेदेन मीयते परिच्छिद्यते वस्तुतत्त्वं येन तत्प्रमाणम् । तस्य च ज्ञानमिति विशेषणमज्ञानरूपस्य सन्निकर्षादेर्नैयायिकादिपरिकल्पितस्य प्रमाणत्वव्यवच्छेदार्थमुक्तम् । तथा ज्ञानस्यापि स्वसंवेदनेन्द्रियमनोयोगिप्रत्यक्षस्य निर्विकल्पस्य प्रत्यक्षत्वस्य प्रामाण्यं सौगतैः परिकल्पितम्, तन्निरासार्थं व्यवसायात्मकग्रहणम् । तथा बहिरापह्रोतृणां विज्ञानाद्वैतवादिनां पुरुषाद्वैतवादिनां पश्यतोहराणां शून्यकान्तवादिनाञ्च विपर्यासव्युदासार्थमर्थग्रहणम् । अस्य चापूर्वविशेषणं गृहीतग्राहिधारावाहिज्ञानस्य प्रमाणतापरिहारार्थ मुक्तम् । तथा परोक्षज्ञानवादिनां मीमांसकानामस्वसंवेदनज्ञानवादिनां सांख्यानां ज्ञानान्तरप्रत्यक्षज्ञानवादिनां यौगानाञ्च मतमपाकतु स्वपदोपादानम् । इत्यव्याप्त्यतिव्याप्त्यसम्भवदोषपरिहा
सूत्रार्थ-अपने आपके और अपूर्वार्थ अर्थात् जिसे किसी अन्य प्रमाण से जाना नहीं है ऐसे पदार्थ के निश्चय करने वाले ज्ञान को प्रमाण कहते हैं ॥१॥
जिसके द्वारा प्रकर्ष से संशय आदि ( आदि शब्द से विपर्यय और अनध्यवसाय का ग्रहण होता है) के निराकरण से वस्तू तत्त्व जाना जाय, वह प्रमाण है। सूत्र में ज्ञान यह विशेषण नैयायिकादि के द्वारा परिकल्पित सन्निकर्षादि के प्रमाणत्व के निराकरण के लिए कहा गया है । बौद्धों ने स्वसंवेदन, इन्द्रिय प्रत्यक्ष, मनो प्रत्यक्ष और योगि प्रत्यक्ष रूप निर्विकल्प प्रत्यक्ष रूप ज्ञान का प्रामाण्य कल्पित किया है, उसके निराकरण के लिए व्यवसायात्मक पद का ग्रहण किया है। बाह्य पदार्थ का अपलाप करने वाले विज्ञानाद्वैतवादी तथा पुरुषाद्वैतवादी एवं देखते हए भी अनादर करके लोप करने वाले शन्यैकान्तवादियों की विपरीतता का निराकरण करने हेतु अर्थ पद का ग्रहण किया है। सूत्र में जो अपूर्व विशेषण कहा गया है, वह गृहीतग्राहि धारावाहिक ज्ञान की प्रमाणता का निराकरण करने के लिए कहा गया है। तथा परोक्षज्ञानवादी मीमांसक, अस्वसंवेदनवादी सांख्य, ज्ञानान्तर प्रत्यक्ष ज्ञानवादी यौग (न्याय-वैशेषिक) के मत का निराकरण करने के लिए स्व पद का ग्रहण किया है। इस प्रकार अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव दोष का निराकरण करने से प्रमाण का लक्षण १. इन्द्रियार्थयोः सम्बन्धः सन्निकर्षः। कारकाणां समूहः कारकसाकल्यम् ।
लघुनैयायिकानां सन्निकर्षों जरन्नैयायिकानां कारकसाकल्यम्, कापिलानाभि
न्द्रियवृत्तिः प्राभाकराणां ज्ञातृव्यापारोऽज्ञानरूपोऽपि । २. अपलापिनाम् । ३. पश्यन्तमनादृत्य हतृणाम् ।
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