Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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विषयानुक्रमणिका
प्रथम समुददेश मङ्गलाचरण प्रमाण और प्रमाणाभास का लक्षण कहने की प्रतिज्ञा सम्बन्ध, अभिधेय और प्रयोजन का कथन प्रमाण का लक्षण प्रमाण के लक्षण में ज्ञान विशेषण का समर्थन ज्ञान निश्चयात्मक है अपूर्वार्थ का लक्षण स्वव्यवसाय का लक्षण ज्ञान का प्रामाण्य द्वितीय समुदवेश प्रमाण के भेद प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण प्रत्यक्ष का लक्षण वैशद्य का लक्षण सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अर्थ और आलोक सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के कारण नहीं हैं ज्ञान अर्थ का प्रकाशक होता है योग्यता से पदार्थों के जानने की व्यवस्था कारण होने से पदार्थ परिच्छेद्य है, इसका निराकरण मुख्य प्रत्यक्ष आवरण सहित और इन्द्रिय जनित मानने पर ज्ञान का प्रतिबन्ध सम्भव सर्वज्ञता पर शङ्का सर्वज्ञता का समर्थन नैयायिकों की सृष्टिकर्तृत्व विषयक मान्यता नैयायिकों की मान्यता का निराकरण ब्रह्म के सद्भाव को सिद्ध करने वाले प्रमाण का अभाव
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