Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown
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भाषाटिप्पणानां विषयानुक्रमणिका ।। पृ० पं० नं०
पृष्ठ पं० दार्शनिकों के मतभेद का दिग्दर्शन २३ २४ स्थान आदि अनेक विषयों में दार्शि२६ भिन्न-भिन्न दार्शनिकों के द्वारा भिन्न-
निकों के मतभेदों का संक्षिप्त वर्णन ४२ १४ भिन्न प्रमाण को ज्येष्ठ मानने की ४१ आचार्यवर्णित चार प्रत्ययों के मूल परंपराओं का वर्णन
२४ १३ स्थान का निर्देश ३० सूत्र.१.१.११ की आधारभूत कारिका
४२ अर्थालोककारणतावाद नैयायिक-बौद्ध की सूचना और उसकी व्याख्या की
उभय मान्य होने पर भी उसे बौद्ध भ्यायावतार वृत्ति के साथ तुलना २५ ३ सम्मत ही समज कर जैनाचार्यों ने जो ३१ अभावप्रमाणवाद के पक्षकार और
खण्डन किया है उसका खुलासा ४४ १२ प्रतिपक्षियों का निर्देश। सूत्र १.१.१२
४३ तदुत्पत्ति-तदाकारता का सिद्धान्त की व्याख्या की न्यायावतार वृत्ति के
सौत्रान्तिक सम्मत होने की तथा योगासाथ तुलना
चार बौद्धों के द्वारा उसके खण्डन की ३२ प्रत्यक्ष के स्वरूप के विषय में भिन्न २
सूचना परंपराओं का वर्णन
२६ ११ ४४ ज्ञानोत्पत्ति के क्रम का दार्शनिकों के ३३ सर्वज्ञवाद और धर्मज्ञवाद का ऐति
द्वारा भिन्न भिन्न रूप से किये गए हासिक दृष्टि से अवलोकन । सर्वज्ञ के
वर्णन का तुलनात्मक निरूपण ४५ १६ विषय में दार्शनिकों के मन्तव्यों का
४५ अनध्यवसाय, मानसज्ञान और अवग्रह दिग्दर्शन । सर्वज्ञ और धर्मज्ञ की चर्चा . . के परस्पर भिन्न होने की आचार्यकृत में मीमांसक और बौद्धों के द्वारा दी
सूचना का निर्देश। प्रतिसंख्यानिरोध गई मनोरंजक दलीलों का वर्णन २७ १२ का स्वरूप ३४ पुनर्जन्म और मोश्च माननेवाले दार्श
४६ अवाय और अपाय शब्द के प्रयोग निकों के सामने आनेवाले समान
की भिन्न २ परंपरा का और अकलंक प्रश्नों का तथा उनके समान मन्तव्यों
कृत समन्वय का वर्णन का परिगणन
३४१० ४७ धारणा के अर्थ के विषय में जैनाचार्यों ३५ समानभाव से सभी दार्शनिकों में पाये
के मतभेदों का ऐतिहासिक दृष्टि से जानेवाले सांप्रदायिक रोष का निदर्शन ३६१६ ३६ सूत्र १. १. १७ को ठीक २ समझने ४८ हेमचन्द्र ने स्वमतानुसार प्रत्यक्ष का
के लिये तत्त्वसंग्रह देखने की सूचना ३६ २० लक्षण स्थिर करके परपरिकल्पित लक्षणों ३७ वक्तृत्व आदि हेतुओं की सर्वशत्व
का निरास करने में जिस प्रथा का विषयक असाधकता को प्रगट करनेवाले
अनुकरण किया है उसके इतिहास पर आचार्यों का निर्देश ३७ १ . दृष्टिपात
४८ १४ ३८ मनःपर्यायज्ञान के विषय में दो परं- ४६ अक्षपादीय प्रत्यक्षसूत्र की वाचस्पति की पराओं के स्वरूप संबंधी मतभेद का
व्याख्या पर 'पूर्वाचार्यकृतव्याख्यावर्णन
वैमुख्येन' इस शब्द से आचार्य ने जो ३६ इन्द्रिय पद की निरुक्ति, इन्द्रियों का
आक्षेप किया है और जो असंगत कारण, उनकी संख्या, उनके विषय,
दिखता है उसकी संगति दिखाने का उनके आकार, उनका पारस्परिक
प्रयत्न भेदाभेद, उनके प्रकार तथा उनके . ५० इन्द्रियों के प्राप्याप्राप्यकारिस्व के विषय स्वामी इत्यादि इन्द्रिय निरूपण विष
में दार्शनिकों के मतभेदों की सूची ४६ २३ यक दार्शनिकों के मन्तव्यों का
५१ प्रत्यक्षलक्षण विषयक दो बौद्ध परंपतुलनात्मक दिग्दर्शन
३८ २१ राओं का निर्देश और उन दोनों के ४० मनके स्वरूप, कारण, कार्य, धर्म और
लक्षणों के निरास करने वाले कुछ
वर्णन
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