Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 324
________________ २२ ६. भाषाटिप्पणगत शब्दों और विषयों की सूची। न्यायावतार में तार्किक ज्ञान चर्चा में अनुमान. मध्व, वल्लभ और भर्तृहरि का निषेध १२५. १८ . निरूपण मुख्य २१. २९ लौकिक और अलौकिक १२६. ७ जिनभद्रोपज्ञ सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष २२. . विषय के बारे में दार्शनिकों का मन्तव्य अकलङ्क के द्वारा परोक्षप्रमाण के अनुमानादि १२६.१८ पांच मेदों का स्थापन २२. १७ जैनसंमत प्रत्यक्ष और परोक्ष दर्शन १२६. २९ राजवार्तिक में उमास्वात्यनुसारी ज्ञान निरूपण उत्पादक सामग्री, शङ्कर का मतभेद १२७. १२ २२. २६ प्रामाण्य के विषय में बौद्ध, वेदान्त, न्याय-वैशेषिक, हेमचन्द्र २३.६ मीमांसक और सांख्य-योग १२७.२॥ ज्ञातता १३१.२० जैनागम दृष्टि से सम्यग और मिथ्यादर्शन ज्ञान १३१. २५ १२.. ज्ञानचर्चा १६. २९ देखो जैनज्ञानप्रकिया प्राचीन जैन परम्परा के अनुसार सम्यमिथ्याज्ञानोत्पत्तिप्रक्रिया । रूप दर्शन का विभाग नहीं १२८. १५ जैनदर्शन ४५. १६ जैन-तार्किकों की दृष्टि से प्रमाणकोटिबाह्यबौद्धपरम्परा ४५. २२ प्रमाणाभास १२६.. वैदिकदर्शन ४५.२५ अभयदेवसम्मतप्रामाण्य १२६. ९ हेमचन्द्र और अकलङ्क ४५. ३, यशोविजय १२६. १४ ज्ञेयावरण ३२. १५ हेमचन्द्र १२६. २५ ज्योतिर्ज्ञान ३५. २० दूषण ११४.२० [ त ] दूषण-दूषणाभास तस्वनिर्णिनीषु ११८.३ निरूपण, सर्वप्रथम ब्राह्मण परंपरा में फिर क्रमशः तस्वबुभुत्सु ११७. ३ बौद्ध-जैन में १०६.८ तरवबुभुत्सुकथा ११६.३१ ब्राह्मण, बौद्ध, जैनशस्त्रिों में प्रयुक्त समानार्थक तदुत्पत्तितदाकारता शब्द १०६. २२ सौत्रान्तिकसंमत ४४. २६ निरूपण का प्रयोजन ११०.१ ब्राह्मण-परम्परा में छल, जाति के प्रयोग का ऊह और तर्कशब्द प्रयोग की प्राचीनता समर्थन ११०.१. ७६. २५ छलादि प्रयोग के बारे में बौद्धों में ऐकमत्य जैमिनि ७७.. नहीं ११०.१२ नव्य नैयायिकों का मन्तव्य ७७.६ जैन-परम्परा में छलादि प्रयोग का निषेध प्राचीन नैयायिकों के मतानुसार प्रमाणकोटि से ११०.१५ बाह्य ७७. १० छलादि प्रयोग के समर्थन और निषेध के पीछे बौद्ध-मन्तव्य ७७.१४ क्या रहस्य है ? ११०.२५ जैनाभिमत प्रामाण्य ७७. १७ छलादि प्रयोग के बारे में बौद्धों के द्वारा ब्राह्मणों तायिन् १.३ का अनुसरण १११.१. तिमिरादिदोष १६.. आगे चलकर बौद्धों के द्वारा छलादि का निषेध त्रिपुटिका ४०.१५ जैन-परम्परा में प्रथम से ही निषेध ११२.४ दर्शन ४६.३ श्वेताम्बर-जैन परम्परा में आगे चलकर समर्थन ११२.११ विविध अर्थ १२५.१ ब्राह्मण-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में सिर्फ निर्विकल्प और दर्शन की एकता १२५. ११ हेतुदोष का निरूपण ११२. २७ दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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