________________
२३
-
६. भाषाटिप्पणगत शब्दों और विषयों की सूची। दिङ्नाग से दूषणों का विकसित वर्णन म्यार्थिक ५६. १८ ११२. २०
द्रव्यास्तिक ६१. २४ दूषणाभास का विस्तृत वर्णन प्राचीन ब्राह्मण द्रव्येन्द्रिय ४०.१९ ग्रन्थों में ११२. २९
[ध] बौद्ध प्रन्थो में अल्प-मात्र ११३.
धर्मकीर्ति १.१४ वर्णन में जैनों द्वारा बौद्ध-ब्राह्मण का
धर्मज्ञ ३०.. अनुसरण ११३. २
धर्मज्ञवाद २८. ८ देखो सर्वज्ञवाद . . हेमचन्द्र ११३..
धर्मदेशक ३०.१० जातिविषयक परम्पराओं का कोष्ठक १५३. 10 धर्मविशेषविरुद्ध88.२६ दूषणाभास १०६. २८ देखो दूषण-दूषणाभास धर्मशास्ता ३०.१. हान्त
धर्मिविशेषविरुद्ध १००.२ अनुमानाजत्व के विषय में धर्मकीर्ति का मन्तव्य | धातु १३६.३
धारणा जैनाचार्यों का मन्तव्य 80. २१
आगम-नियुक्तिकालीन ४७.५ लक्षण और प्रकार १.५
पूज्यपाद ४७.. जैनाचार्यों की दृष्टि से उपयोग 8१.१३
जिनभद्रकृत तीन भेद ४७.१० अकलकादि दिगम्बराचार्यों का मतभेद ५७.१३
हेमचन्द्रका समन्वय ४८.५ शन्ताभास न्याय-वैशेषिक सूत्र में निरूपण नहीं १०३.२६ धारणा ६६. २० न्यायप्रवेश, प्रशस्त और माठर के भेदों की | धारावाहिकज्ञान तुलना १०४..
प्रामाण्य-अप्रामाण्य की चर्चा का धर्मकीर्ति के जयन्त का निरूपण, बौद्ध-वैशेषिक के आधार द्वारा प्रमाणशास्त्र में प्रवेश ११.१७ पर १०४.२१
न्याय-वैशेषिकसम्मत प्रामाण्य ११. २३ न्यायसारगत संदिग्धउदाहरणाभास १०५.. मीमांसक के द्वारा प्रामाण्य समर्थन १२.. धर्मकीर्ति १०५.४
बौद्ध धर्मोत्तर सम्मत अप्रामाण्य १२. ९ धर्मकीर्ति और सिद्धसेनादि जैनाचार्य १०५." अर्चटसम्मत प्रामाण्य-अप्रामाण्य १२.११ हेमचन्द्र की विशेषता १०३..
जैनाचार्यों का मन्तव्य १३..
हेमचन्द्र की विशेषता १४.१ देवसर्वज्ञवाद २६.२६ दोषाभास ११०.. द्रव्य
नय ६२.१ वैयाकरणों की व्युत्पत्ति ५४..
नयवाद ६२. ३, ६४. २७ देखो अनेकान्तवाद, जैनों के द्वारा द्रव्यशब्द का प्रयोग किस-किस | निक्षेप ६२... अर्थ में ? ५५., .
निक्षेपपद्धति ६५. ५ देखो अनेकान्तवाद न्याय-वैशेषिककृत व्याख्या ५५.१.
निग्रहस्थान व्याख्या में महाभाष्य, योगभाष्य, कुमारिल
न्यायदर्शन, चरक और प्राचीन बौद्ध का , और जनाचार्यों की एकवाक्यता ५५. १३
ऐकमत्य ११६. २९ पर्याय ५६. .
धर्मकीर्ति के वादन्याय में स्वतन्त्रनिरूपण गुण और पर्याय के भेदाभेद के बारे में
१२०.६ जैनाचार्यों का मतभेद ५६.९
जैनाचार्य पात्रस्वामी और अकलङ्क १२०.१. द्रव्य और गुण के भेदामेद के बारे में
धर्मकीर्तिकृत ब्राह्मण-परम्परा का खण्डन और .. दार्शनिकों का मतमेद ५६.३॥
नई परम्पराका स्थापन १२०. १६ १३ ।
अनकान्तवाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org