Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 322
________________ ६. भाषाटिप्पणगत शब्दों और विषयों की सूची। अव्यापक १४२. ३३ अव्याप्तिसम (जाति) ११४. १७ इतरभेदज्ञापन .९ असंशय (जाति ) ११४. १७ इन्द्र (सुगत)४०३ असत्प्रतिपक्षितत्व १.१४ इन्द्रिय असदुत्तर १०६. २८ पाणिनिकृत निरुक्ति ३८.२५ असम्यक्खण्डन १०६. २८ जैनबौद्धाचार्यकृत निरुक्ति ३६.३ असर्वज्ञवाद २६. २६ देखो सर्वज्ञवाद माठरकृत निरुक्ति ३६. १७ असाधनाङ्गवचन १२२. १६ बुद्धघोष की विशेषता ४०.१ असाधारण १०१.७; १४२. ३३ देखो अनैकान्तिक दार्शनिकों के मतानुसार उसका कारण ४०.९ असाधारणधर्म ४. १५ आकार-अधिष्ठान ४०. १५ असिद्ध मन ४०. २२ न्यायसूत्र 8८. १९ सांख्यसंमत पांच कर्मेन्द्रियां ४० २४ प्रशस्त, न्याप्रवेश और माठर में चार बौद्धसंमत बाईस इन्द्रियां ४१.१ प्रकार ६८.२४ विषय ४१.८ पूर्व परम्परा में धर्मकीर्ति का संशोधन 85.२६ एकत्व-नानात्ववाद ४१. १६ न्यायसार और न्यायमञ्जरी 88.. स्वामी ४१. २३ जैनाचार्यों के द्वारा धर्मकीर्ति का अनुसरण और प्राप्याप्राप्यकारित्व ४६.२३ न्यायपरम्परा का खण्डन 88.२ इन्द्रियमनोजन्यत्व १३४.१६ अहेतुसम (जाति) ११४.४ इष्टविघातकृत् ६६. २२ [ आ] . [ई.] ईश्वर १३२ १५ आगम ईश्वरज्ञान २६.२ अदृष्टार्थक का प्रामाण्य १८. १ ईश्वरवादी १६.२८ मीमांसक और नैयायिक-वैशेषिक १८.१८ । ईश्वरसाक्षीचैतन्य १३३. ११ प्रामाण्यसमर्थन में अक्षपाद का मन्त्रायुर्वेद का | ईश्वरीयज्ञान २३. २८ दृष्टान्त १८.५ ईश्वरीयसर्वज्ञत्व २६. ६ हेमचन्द्र ज्योतिषशास्त्र का उदाहरण क्यों ईहा ६६. २०७७. १७ देते हैं ? १८.२५ [3] धर्मकीर्ति की आपत्ति १८. २९ उत्कर्षसम (जाति ) ११३. २० आस्मकर्मसम्बन्ध उत्तर १०६. २२ माननेवालों के सामने आनेवाले कितने एक उदाहरणाभास १०४. २५ प्रश्न ३५.१५ उपपत्तिसम (जाति) ११४. ७ माननेवाले समी के समान मन्तव्यों का उपमान २१. १०; ७६.१०; १७ परिगणन ३४. २० देखो प्रत्यभिज्ञान दार्शनिकों के मन्तव्य ३४. ३२ उपयोग १२८. २६ आत्मज्ञान १३३. ९ उपलब्धि ८४.४ आस्ममात्रसापेक्षत्व १३४. १५ उपलब्धिसम (जाति) ११४.८ आस्मा ७०.९ देखो प्रमाता उपालम्भ १०६. २२ देखो दूषणदूषणाभास आत्माश्रय (दोष) ६६.१ उपेक्षणीय (अर्थ) १०.३ आलोचन १२५. १५ उभय ६५. १३ आश्रयासिद्ध ( दृष्टान्ताभास ) १०४. १९ उभयदोषप्रसङ्ग ६५." आहायज्ञान ७७.८ उमास्वाति १.९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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