Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown
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प्रमाणमीमांसायाः
[पृ० २१. पं०८दोनों जैन परम्परा का संग्राहक है तथापि इस सूत्रण में जो शाब्दिक रचना और जो आर्थिक वक्तव्य है वह एतद्विषयक प्रकलङ्क की कृति के साथ अधिक सादृश्य रखता है।
. पृ०. २१. पं० ८. 'एतेन दर्शनस्य'-तुलना-"अर्थग्रहणयोग्यतालक्षणं तदनन्तरभूतं सन्मात्रदर्शनं स्वविषयव्यवस्थापनविकल्पम् उत्तरं परिणामं प्रतिपद्यते अवग्रहः ।"-लघी० 5 स्ववि० १.५।
पृ०. २१. पं० १२. 'प्रतिसंख्यानेन'-बौद्ध तार्किक जिसे प्रत्यक्षप्रमाणरूप मानते हैं उस निर्विकल्पक ज्ञान को दर्शन या अनध्यवसाय कहकर प्रा० हेमचन्द्र ने प्रमाणकोटि से बाहर रक्खा है, और उसके अनन्तरभावी अवग्रह से प्रमाणभूत ज्ञानपरम्परा का प्रारम्भ
मानकर इन्द्रियजन्य उस अवग्रह को मानसविकल्प से भी भिन्न कहा है। बौद्ध तार्किक 10 मानसविकल्प को अप्रमाण मानकर उसका प्रतिसंख्याननामक समाधिविशेषभावी भावना
से नाश मानते हैं-"प्रतिसंख्यानिरोधो यो विसंयोगः पृथक् पृथक" "विसंयोग: यो धिया" अभिधर्म० १. ६; २. ५७ । तत्त्वसं० प० पृ० ५४७ । मध्य० वृ० पृ० ३६६, ५५६ । अभिधम्मत्थ० ६. २८ । ब्र० शाङ्करभा० २. २. २२ ।
पृ० २१. पं० २८. 'ईहित-पागम और उसकी चूर्णि प्रादि व्याख्यानों में जब तक 15 प्राकृत भाषा का सम्बन्ध रहा तब तक अवाय शब्द का प्रयोग ही देखा जाता है। प्राकृत
'प्रवाय' शब्द संस्कृत 'पाय' और संस्कृत 'प्रवाय' दोनों से निष्पन्न होता है। उमास्वाति ने अवाय का संस्कृत अपाय बनाकर उसी को मूल सूत्र और भाष्य में प्रयुक्त किया है। पूज्यपाद प्रादि दिगम्बराचार्यों ने संस्कृत अवाय शब्द को ही सूत्रपाठ एवं अपनी अपनी
व्याख्यानों में रखा है। 20 यद्यपि प्रकलङ्क ने पूज्यपाद के अनुसार संस्कृत शब्द तो रखा अवाय, पर उनकी दृष्टि
भाष्यप्रयुक्त अपाय शब्द की भोर भी गई और उनके मन में प्रश्न हुआ कि क्या संस्कृत में भाष्यानुसार अपाय शब्द का प्रयोग ठीक है या सर्वार्थसिद्धि के अनुसार अवाय शब्द का प्रयोग ठीक है ? । इस प्रश्न का जवाब उन्होंने बुद्धिपूर्वक दिया है। उन्होंने देखा कि अपाय
और अवाय ये दोनों संस्कृत शब्द प्राकृत अवाय शब्द में से फलित हो सकते हैं। तब 25 दोनों संस्कृत शब्दों का पाठ क्यों न मान लिया जाय ?। यह सोचकर उन्होंने संस्कृत में उक्त
दोनों शब्दों के प्रयोग को सही बतलाया फिर भी दोनों शब्दों के प्रयोग में थोड़ा-सा अर्थभेद दिखलाया। वे कहते हैं कि जब निर्णय में व्यावृत्तिप्रधानता रहती है तब वह अपाय है और जब विधिप्रधानता रहती है तब वह अवाय है। अपाय में भी विधि अंश गौणरूपेण
श्रा ही जाता है। इसी तरह अवाय में भी गौणरूपेण निषेध अंश आ जाता है। अतएव चाहे 80 अपाय शब्द का प्रयोग करो चाहे अवाय शब्द का, पर वस्तुतः दोनों. शब्द विशेषावधारण
रूप निर्णयबोधक होने से पर्यायमात्र हैं-तत्त्वार्थरा० १. १५ ।
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