Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ ११६ पृ० ६४. पं० २६.] भाषाटिप्पणानि । पृ० ६३, पं० २१. 'ननु तत्त्वरक्षणम्'-तुलना-"नहि वादस्तत्त्वाध्यवसायसंरक्षणार्थी भवति जल्पवितण्डयोरेव तथात्वात् । तदुक्तम्-तत्त्वाभ्यवसाय... . ..."इत्यादि-तत्त्वार्थश्लो. पृ. २७८ । प्रमेयक० पृ० १६४ BI पृ०६३. पं० २६. 'वादलक्षणे-तुलना-"प्रतिषेधे कस्यचिदभ्यनुज्ञानार्थ सिद्धान्ताविरुद्ध इति वचनम् । 'सिद्धान्तमभ्युपेत्य तद्विरोधी विरुद्धः' इति हेत्वाभासस्य निग्रहस्थानस्याभ्यनुज्ञा 5 वादे। पञ्चावयवोपपन्न इति 'हीनमन्यतमेनाप्यवयवेन न्यूनम्' 'हेतूदाहरणाधिकमधिकम्' इति चैतयोरभ्यनुज्ञानार्थमिति"-न्यायभा० १. २. १ । पृ० ६४. पं० १४. 'दुःशिक्षित'-न्यायम० पृ० ११ । ' पृ० ६४. पं० १६. 'अथ प्रबलप्रतिवादि'-तुलना-"यदा जानन्नपि परपक्षकशिमानं स्वपक्षे द्रढिमानं च क्वचिदवसरे परप्रयुक्त साधने दूषणं सपदि न पश्यति स्वपक्षसाधनं च झगिति 10 • न स्मरति तदा छलादिभिरप्युपक्रम्य परमभिभवति प्रात्मानं च रक्षति इति । .......तथापि एकान्तपराजयाद्वरं सन्देह इति युक्तमेव तत्प्रयोगेण स्फुटाटोपकरणम् ।............मुमुक्षोरपि क्वचित्प्रसङ्गे तदुपयोगात् । ............” इत्यादि-न्यायम० पृ० ५६५ । __ अ० २. प्रा० १. सू० ३१-३५. पृ० ६४. वाद से सम्बन्ध रखनेवाले कुल कितने पदार्थों का निरूपण प्राचार्य हेमचन्द्र ने किया होगा अथवा करना चाहा होगा सो अज्ञात है 15 तथापि उपलभ्य इस अधूरे प्रमाणमीमांसा ग्रन्थ से इतना तो अवश्य जान पड़ता है कि उन्होंने 'पत्रवाक्य' का निरूपण प्रारम्भ किया जो अधूरा ही लभ्य है। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि उनका अभिमत पत्रनिरूपण दिगम्बर तार्किक विद्यानन्द की पत्रपरीक्षा का ही अवलम्बो मुख्यतया होगा। उन्होंने पत्रस्वरूप के निरूपण में बौद्ध आदि प्रतिवादियों का मत खण्डन विद्यानन्द आदि की तरह अवश्य किया होगा, पर सिद्धान्त उनका सम्भवतः वही होगा जो 20 विद्यानन्द आदि का है । इस विषय के साहित्य में से हमारे सामने इस समय लभ्य ग्रन्थ तो पत्रपरीक्षा, प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० २०७B) ही हैं। वादी देवसूरिकृत स्याद्वादरत्नाकर का वादपरिच्छेद जिसमें 'पत्र' के स्वरूप का विस्तृत निरूपण होना सम्भवित है, उपलभ्य न होने से जैनपरम्परानुसारी पत्रनिरूपण के जिज्ञासुओं को इस समय केवल उक्त दिगम्बर तार्किको के ही ग्रन्थों को देखना चाहिए। 25 प्रा. हेमचन्द्र का निग्रहस्थानविषयक निरूपण भाग्यवश अखण्डित मिलता है जो ऐतिहासिक तथा तात्त्विक दृष्टि से बड़े महत्त्व का है और जो जैन तार्किकों की तद्विषयक निरूपण परम्परा में सम्भवतः अन्तिम ही है। भारतीय तर्क साहित्य में निग्रहस्थान की प्राचीन विचारधारा ब्राह्मण परम्परा की ही है, जो न्याय तथा वैद्यक के ग्रन्थों में देखी जाती है। न्याय परम्परा में प्रक्षपाद ने जो संक्षेप 30 में विप्रतिपत्ति और अप्रतिपत्ति रूप से द्विविध निग्रहस्थान को बतलायां और विस्तार से उसके बाईस भेद बतलाये वही वर्णन आज तक के सैकड़ों वर्षों में अनेक प्रकाण्ड नैयायिकों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340