Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown
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पृ० २५. पं० २४. ]
भाषाटिप्पणानि ।
कारित्व की इस तार्किक कसौटी का श्रेय जहाँ तक ज्ञात है, बौद्ध परम्परा को है । इससे यह स्वाभाविक है कि बौद्ध दार्शनिक क्षणिकत्व के पक्ष में उस कसौटी का उपयोग करें और दूसरे वादों के विरुद्ध । हम देखते हैं कि हुआ भी ऐसा ही । बौद्धों ने कहा कि जो क्षणिक नहीं वह अर्थक्रियाकारी हो नहीं सकता और जो अर्थक्रियाकारी नहीं वह सत् अर्थात् पारमार्थिक हो नहीं सकता- - ऐसी व्याप्ति निर्मित करके उन्होंने केवल नित्यपक्ष में अर्थ . 5 क्रियाकारित्व का असंभव दिखाने के वास्ते क्रम और यौगपद्य का जटिल विकल्पजाल रचा और उस विकल्पजाल से अन्त में सिद्ध किया कि केवल नित्य पदार्थ अर्थक्रिया कर ही नहीं सकता अतएव वैसा पदार्थ पारमार्थिक हो नहीं सकता-वादन्याय पृ० ६ । बौद्धों ने केवल नित्यत्ववाद (तवसं ० का ० ३६४ ) की तरह जैनदर्शनसम्मत परिणामिनित्यत्ववाद अर्थात् द्रव्यपर्यायात्मकवाद या एक वस्तु को द्विरूप माननेवाले वाद के निरास में भी उसी अर्थ - 10 क्रियाकारित्व की कसौटी का उपयोग किया - तत्त्वसं० का० १७३८ । उन्होंने कहा कि एक ही पदार्थ सत् असत् उभयरूप नहीं बन सकता। क्योंकि एक ही पदार्थ अर्थक्रिया का करनेवाला और नहीं करनेवाला कैसे कहा जा सकता है ?। इस तरह बौद्धों के प्रतिवादी दर्शन वैदिक और जैन दो विभाग में बँट जाते हैं I
वैदिक परंपरा में से, जहाँ तक मालूम है, सबसे पहिले वाचस्पति मिश्र और जयन्त 15 ने उस बौद्धोद्भावित अर्थक्रियाकारित्व की कसौटी का प्रतिवाद किया । यद्यपि वाचस्पति और जयन्त दोनों का लक्ष्य एक ही है और वह यह कि अक्षणिक एवं नित्य वस्तु सिद्ध करना, तो भी उन्होंने अर्थक्रियाकारित्व जिसे बौद्धों ने केवलनित्यपक्ष में असम्भव बतलाया था उसका बौद्ध सम्मत क्षणिकपक्ष में असम्भव बतलाते हुए भिन्न-भिन्न विचारसरणी का अनुसरण किया है । वाचस्पति ने सापेक्षत्व अनपेक्षत्व का विकल्प करके क्षणिक में अर्थक्रिया - 15 कारित्व का असम्भव साबित किया ( तात्पर्य० पृ० ५५४ - ६ । न्यायकणिका पृ० १३०-६ ), ता जयन्त ने बौद्ध स्वीकृत क्रमयौगपद्य के विकल्पजाल को ही लेकर बौद्धवाद का खण्डन कियान्यायम० पृ० ४५३, ४६४ । भदन्त योगसेन ने भी, जिनका पूर्वपक्षी रूप से निर्देश कमलशील ने तन्वसंग्रहपञ्जिका में किया है, बौद्ध सम्मत क्षणिकत्ववाद के विरुद्ध जो विकल्पजाल रचा है उसमें भी बौद्धस्वीकृत क्रमयैौगपद्यविकल्पचक्र को ही बौद्धों के विरुद्ध चलाया है- 20 तत्त्वसं० का० ४२८ से । यद्यपि भदन्त विशेषण होने से योगसेन के बौद्ध होने की सम्भावना की जाती है तथापि जहाँ तक बौद्ध परंपरा में नित्यत्व — स्थिरवाद पोषक पक्ष के अस्तित्व का प्रामाणिक पता न चले तब तक यही कल्पना ठीक होगी कि शायद वह जैन, प्रजीवक या सांख्यपरिव्राजक हो । जो कुछ हो यह तो निश्चित ही है कि बौद्धों की अर्थक्रियाकारित्व वाली तार्किक कसौटी को लेकर ही बौद्धसम्मत क्षणिकत्ववाद का खण्डन नित्यवादी वैदिक 25 विद्वानों ने किया ।
चणिकत्ववाद के दूसरे प्रबल प्रतिवादी जैन रहे। कत्व का निरास उसी प्रर्थक्रियाकारित्ववाली बौद्धोद्भावित
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उन्होंने भी तर्कयुग में क्षणितार्किक कसौटी को लेकर ही
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