Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
View full book text
________________
प्रमाणमीमांसा
२३
४१-- ननु भावांशादभावांशस्याभेदे कथं प्रत्यक्षेणाग्रहणम् ?, भेदे वा घटाद्यभावरहितं भूतलं प्रत्यक्षेण गृह्यत इति घटादयो गृह्यन्त इति प्राप्तम्, तदभावाग्रहणस्य तद्भावग्रहणनान्तरीयकत्वात् । तथा चाभावप्रमाणमपि पश्चात्प्रवृत्तं न तानुत्सारयितुं पटिष्ठं स्थात्, अन्याथाऽसङ्कीर्णस्य सङ्कीर्णताग्रहणात् प्रत्यक्षं भ्रान्तं स्यात् ।
४२--अपि चायं प्रमाणपञ्चकनिवृत्तिरूपत्वात् तुच्छः । तत एवाज्ञानरूपः कथं प्रमाणं भवेत् । तस्मादभावांशात्कथञ्चिदभिन्नं भावांशं परिच्छिन्दता प्रत्यक्षादिना प्रमाणेनाभावांशी गृहीत एवेति तदतिरिक्तविषयाभावानिर्विषयोऽभावः । तथा च न प्रमाणमिति स्थितम् ॥१२॥
४३ -- विभागमुक्त्वा विशेषलक्षणमाह-विशदः प्रत्यक्षम् ॥१३॥
४४-सामान्यलक्षणानुवादेन विशेषलक्षणविधानात् 'सम्यगर्थनिर्णयः' इति प्रमाणसामान्यलक्षणमनूद्य 'विशद:' इति विशेषलक्षणं प्रसिद्धस्य प्रत्यक्षस्य विधीयते । तथा च प्रत्यक्षं धर्मि । विशदसम्यगर्थनिर्णयात्मकमिति साध्यो धर्मः । प्रत्यक्षत्वादिति
४१ - समाधान - अभाव अश भाव-अंश से अभिन्न है या भिन्न ? यदि अभिन्न है तो प्रत्यक्ष के द्वारा भाव-अंश जानने पर वह अनजाना कैसे रह सकता है ? यदि भिन्न है तो घटाभाव से भिन्न भूतल के ग्रहण होने का अर्थ घट का ग्रहण होना ही कहलाया; क्योंकि किसी वस्तु के अभाव का ग्रहण न होना उसके भाव का ग्रहण होने पर ही होता है। जब प्रत्यक्ष से घट का ग्रहण हो गया तो बाद में अभाव प्रमाण प्रवृत्त हो कर भी उसका निषेध नहीं कर सकता । अगर अभाव प्रमाण घट का निषेध करता है तो प्रत्यक्ष को भ्रांत मानना पडेगा, क्योंकि असंकीर्ण को संकीर्ण रूप में ग्रहण किया अर्थात् जो भूतल घटरहित था उसे घटसहित जाना ।
प्रत्यक्ष आदि पाँच प्रमाणों की प्रवृत्ति न होना अभाव निवृत्ति रूप होने से तुच्छ ( निःस्वरूप ) है । अतएवं
४२ --- सत्ता को गहण करने वाले प्रमाण है । इस प्रकार अभाव प्रमाण अज्ञानरूप होने से कैसे प्रमाण हो सकता है ?
वास्तव में पदार्थ के अभाव -अंश से कथंचित् अभिन्न भाव - अंश को जानने वाले प्रत्यक्षादि प्रमाण अभाव - अंश को भी जान ही लेते हैं । इससे अतिरिक्त कुछ ज्ञेय बचता नहीं है, अतएव अभाव विषयशून्य है और विषय शून्य होने के कारण प्रमाण नहीं है ॥ १२ ॥
४३ --- प्रमाण के भेद कह कर विशेष लक्षण कहते हैं- विशद - स्पष्टता प्रत्यक्ष प्रमाण है | १३ | ४४-सामान्य लक्षण का अनुवाद करके विशेष लक्षण का विधान किया जाता है, इस न्याय के अनुसार 'सम्यगर्थ - निर्णय' इस सामान्य लक्षण के अनुवाद से ही प्रत्यक्ष के लक्षण का विधान किया गया है । अर्थात् प्रत्यक्ष के लक्षण में प्रमाण- सामान्य के लक्षण का अध्याहार समझ ही लेना चाहिए । अतएव यहाँ 'प्रत्यक्ष 'पक्ष है, 'विशद सम्यगर्थ निर्णयात्मक' साध्य है और 'प्रत्यक्षत्वात् '