Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 106
________________ प्रमाणमीमांसा गम्भीरगजितारम्भनिभिन्नगिरिगह्वराः। त्वङ्गत्तडिल्लतासङ्गपिशड्गोत्तुड्गविग्रहाः ॥" [न्यायम० पृ०१२९ ] "रोलम्बगवलव्यालतमालमलिनत्विषः। वृष्टि व्यभिचरन्तीह नैवंप्रायाः पयोमुचः ॥" [न्याय. म. १२९] इति । ४४-'कार्यम्' यथा वृष्टौ विशिष्टनदीपूरः, कृशानौ धूमः,चैतन्ये प्राणादिः । पूरस्य वैशिष्टयं कथं विज्ञायत इति चेत् उक्तमत्र नैयायिकः । यदाहुः "आवर्तवर्तनाशालिविशालकलुषोदकः । कल्लोलविकटास्फालस्फुटफेनच्छटाङ्गितः ॥ वहद्बहलशेवालफलशाद्वलसकुलः । नदीपूरविशेषोऽपि शक्यते न न वेदितुम्?॥" (न्यायम०पृ०१३० ) इति धूमप्राणादीनामपि कार्यत्वभिश्चयो न दुष्करः । यदाहुः "कार्यं धूमो हुतभुजः कार्यधर्मानुवृत्तितः । स भवंस्तदभावेऽपि हेतुमत्तां विलङ्घयेत् ॥"(प्रमाणवा० १.३५ ) 'जो मेघ अपनी गंभीर गर्जना से पर्वत की गुफाओं को भेद डालते हैं, जिनमें चमचमाती हुई बिजली होती है और उसके कारण जिन मेवों में पीलापन आता है जो ऊँचे होते हैं और जिनका वर्ण भ्रमर, गवल (भैस का सींग) सर्प, और तमाल के समान मलीन होता है, प्रायः इस प्रकार के मेघों के होने पर अवश्य वृष्टि होती है।' (३) कार्यहेतु-जैसे वर्षा के अनुमान में विशिष्ट नदीपूर, अग्नि के अनुमान में धूम, चैतन्य के अस्तित्व में प्राणादि हेतु १कार्यहेतु हैं। शंका-पूर की विशिष्टता कैसे जानी जा सकती? समाधान-नयायिकों ने इस सम्बन्ध में ऐसा कहा है- यदि नदी का जल आवर्तों से युक्त, विशाल और मलीन हो, हिलोरों की जबदस्त टक्करों से स्पष्ट दिखाई देने वाले फेनों की धरा से युक्त हो, बहते हुए सेवार, फल और घासफूस आदि से व्याप्त हो, तो वह विशिष्ट नदीपूर है । ऐसा विशिष्ट नदीपूर जाना न जा सकता हो, ऐसी बात नहीं हैं। धूम अग्नि का कार्य है और प्राणादि चैतन्य के कार्य हैं, इस तथ्य का निर्णय करना भी कठिन नहीं है । कहा भी है___ धूम,अग्नि का कार्य है.क्योंकि उसमें कार्य का धर्म पाया जाता है-वह कारण (अग्नि) के होने पर ही होता है और उसके अभाव में नहीं होता है । यदि धूम अग्नि के अभाव में हो तो वह अपने अग्निकार्यत्व का उल्लंघन करे अर्थात् अग्नि का कार्य ही न हो।' १-ऊपर कहीं वर्षा हुई है, क्योंकि नदी में विशिष्ट पूर आ रहा है,पर्वत में अग्नि है,क्योंकि धूम दिखाई देता है, यह शरीर चैतन्यवान् है, क्योंकि श्वासोच्छवास आदि हैं।

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