Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 126
________________ प्रमाणमीमांसा २३- तत्र प्रतिज्ञाया लक्षणमाह साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा ॥ ११ ॥ ११९ ५४ - साध्यं सिषाधयिषितधर्मविशिष्टो धर्मो, निर्दिश्यते अनेनेति निर्देशो वचनम् साध्यस्य निर्देशः साध्यनिर्देश:' प्रतिज्ञा प्रतिज्ञायतेऽनयेति कृत्वा, यथा अयं प्रदेशोऽग्निमानिति ॥११॥ २५- हेतुं लक्षयति साधनत्वाभिव्यञ्जकविभक्त्यन्तं साधनवचनं हेतुः ॥१२॥ २६ - साधनत्वाभिव्यञ्जिका विभक्तिः पञ्चमी तृतीया वा, तदन्तम् ' साधनस्य उक्तलक्षणस्य ‘वचनम्' हेतुः । धूम इत्यादिरूपस्य हेतुत्वनिराकरणाय प्रथमं पदम् । अव्याप्तवचनहेतुत्वनिराकरणाय द्वितीयमिति । स द्विविधस्तथोपपत्त्यन्यथानुपपत्तिभ्याम् तद्यथा धूमस्य तथैवोपपत्तेर्धूमस्यान्यथानुपपत्तेर्वेति ॥ १२॥ २७- उदाहरणं लक्षयति दृष्टान्तवचनमुदाहरणम् ||१३|| २३ प्रतिज्ञा का लक्षण - सूत्रार्थ -साध्य का निर्देश करना प्रतिज्ञा है । २४ - जिसे सिद्ध करना इष्ट है उस धर्म से युक्त धर्मो को यहाँ 'साध्य, समझना चाहिए उस साध्य को कहना प्रतिज्ञा कहलाता है । जैसे 'यह प्रदेश अग्निमान् है । 'यहाँ अग्निमत्त्व धर्म सिद्ध करना इष्ट है और उस धर्म से युक्त धर्मों 'यह प्रदेश, है । इस प्रकार साध्य धर्मो का कथन 'प्रतिज्ञा है ॥ ११ ॥ २५-हेतु का लक्षण-सूत्रार्थ-साधनत्व को प्रकट करने वाली विभक्ति जिसके अन्त में हो ऐसा साधन का कथन ' हेतु, कहलाता है ॥ १२॥ २६-साधनत्व को प्रकट करने वाली विभक्ति पंचमी अथवा तृतीया मानी गई है । इन दोनों में से किसी विभक्ति वाले तथा पूर्वोक्त लक्षण से युक्त साधन का कथन करना हेतु है । 'धूम, इतना मात्र कह देना हेतु नहीं है । इस बात को प्रकट करने के लिए साधनत्वाभिव्यञ्जक विभक्त्यन्तम्, इस पद का प्रयोग किया है और साध्य के साथ जिसकी व्याप्ति न हो वह हेतु नहीं हो सकता, यह बतलाने के लिए 'साधन वचन, इस पद का प्रयोग किया है । ऐसा हेतु तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति के भेद से दो प्रकार का कहा गया है' जैसे 'क्योंकि धूम अग्नि के होने पर ही हो सकता है ( तथोपपत्ति) और 'क्योंकि धूम अग्नि के अभाव में नहीं हो सकता ( अन्यथानुपपत्ति) ॥१२॥ २७-- उदाहरण का लक्षण - सूत्रार्थ - दृष्टान्त का कथन उदाहरण कहलाता है ॥३१॥

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