Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 139
________________ १३२ ५६-तथा प्रमाणमीमांसा विपरीतान्वयव्यतिरेकौ ॥ ३६ ॥ ५७ - 'विपरीतान्वयः' विपरीतव्यतिरेकः' च दृष्टान्ताभासौ भवतः । तत्र विपरीतान्वयो यथा यत् कृतकं तदनित्यमिति वक्तव्ये यदनित्यं तत् कृतकं यथा घट इत्याह । विपरीतव्यतिरेको यथा अनित्यत्वाभावे न भवत्येव कृतकत्वमिति वक्तव्ये कृतकत्वाभावे न भवत्येवानित्यत्वं यथाकाश इत्याह । साधनधर्मानुवादेन साध्यधस्य विधानमित्यन्वयः । साध्यधर्मव्यावृत्त्यनुवादेन साधनधर्मव्यावृत्तिविधानमिति व्यतिरेकः । तयोरन्यथाभावे विपरीतत्वम् । यदाह " साध्यानुवादाल्लिङ्गस्य विपरीतान्वयो विधिः । हेत्वभावे त्वसत्साध्यं व्यतिरेकविपर्यये ॥” इति ॥ २६ ॥ अप्रदर्शितान्वयव्यतिरेकौ ॥२७॥ ५८ - 'अप्रदशितान्वयः 'अप्रदर्शितव्यतिरेक, च दृष्टान्ताभासौ । एतौ च प्रमाणस्यानुपदर्शनाद्भवतो न तु वीप्सासर्वावधारणपदानामप्रयोगात्, सत्स्वपि तेष्वसति ५६ - ( और भी दृष्टान्ताभास हैं) तद्यथा सूत्रार्थ - विपरीतान्वय और विपरीतव्यतिरेक भी हृष्टान्ता मास हैं ॥२६॥ ५७--साधन के सद्भाव में साध्य का सद्भाव जहाँ प्रदर्शित किया जाता है वह अन्वयहृष्टान्त कहलाता है । इससे विपरीत प्रयोग करना 'विपरीतान्वय' है और साध्य के अभाव में साधन का अभाव जहाँ प्रदर्शित किया जाय वह व्यतिरेकदृष्टान्त कहलाता है। इसके विपरीत प्रयोग करना विपरीतव्यतिरेक, दृष्टान्ताभास है। जैसे--शब्द अनित्य है क्योंकि कृतक है । यहाँ कहना तो ऐसा चाहिए कि कृतक होता है वह अनित्य होता है, किन्तु इससे विपरीत कहना किजो अनित्य होता है वह कृतक होता है जैसे घट, यह विपरीतान्वय है । विपरीतव्यतिरेक, जैसे जो अनित्य नहीं होता वह कृतक नहीं होता, ऐसा कहना चाहिए किन्तु इससे विपरीत कहना - जो कृतक नहीं होता वह अनित्य नहीं होता. जैसे आकाश । यह विपरीतव्यतिरेक हैं । कहा भी है साध्य का अनुवाद करके साधन का विधान करना विपरीतान्वय कहलाता है और साधन के अभाव में साध्य का अभाव प्रदर्शित करना विपरीतव्यतिरेक है ॥ २६ ॥ सूत्रार्थ - अप्रदशितान्वय और अप्रदर्शितव्यतिरेक नामक भी दो दृष्टान्ताभास हैं ॥२७॥ ५८ - अन्वय को न दिखलाना और व्यतिरेक को न दिखलाना भी दृष्टान्तामास हैं । ये दृष्टान्तामास तर्कनामक व्याप्तिग्राहक प्रमाण के न दिखलाने पर होते हैं, वीप्सा, सर्व अथवा अवधारण पदों का प्रयोग न करने से नहीं होते । क्योंकि इन पदों के न होने पर भी प्रमाम यदि न हो तो अन्वय और व्यतिरेक की सिद्धि नहीं होती ।

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