Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 172
________________ प्रमाणमीमांसा १६५. तथैव गमकत्वप्रसङ्गात् दृष्टान्तोऽनर्थक एव स्यात् । विपक्षव्यावृत्त्या च हेतुं समर्थ यन् कथं प्रतिज्ञां प्रतिक्षिपेत् ? । तस्याश्चानभिधाने क्व हेतुः साध्यं वा वर्तते ? । गम्यमाने प्रतिज्ञाविषय एवेति चेत्; तहि गम्यमानस्यैव हेतोरपि समर्थनं स्याश तूक्तस्य । अथ गम्यमानस्यापि हेतोर्मन्दमतिप्रतिपत्त्यर्थं वचनम्; तथा प्रतिज्ञावचते.. कोsपरितोषः ? 1 १०७- यच्चेदमसाधनाङ्गमित्यस्य व्याख्यानान्तरम् - साधर्म्येण हेतोर्वचने वैधवचनम्, वैधर्म्येण च प्रयोगे साधर्म्यवचनं गम्यमानत्वात् पुनरुक्तमतो न साधनाङ्गम्; इत्यप्यसाम्प्रतम्, यतः सम्यक् साधनसामर्थ्येन स्वपक्षं साधयतो वादिनो निग्रहः स्यात्, असाधयतो वा ? । प्रथमपक्षे न साध्यसिद्ध्यप्रतिबन्धिवचनाधिक्योपालम्भमात्रेणास्य निग्रहः, अविरोधात् । नन्वेवं नाटकादिघोषणतोऽप्यस्य निग्रहो न स्यात्; स्वीकार किया है ।) शंका - सत्त्व आदि हेतु दृष्टान्त - सपक्ष के बिना भी केवल विपक्षव्यावृत्ति. से ही गमक हो जाते हैं, समाधान - तो सभी जगह विपक्षव्यावृत्ति से ही हेतु गमक हो जायगा, फिर दृष्टान्त की क्या आवश्यकता है ? विपक्षव्यावृत्ति के द्वारा हेतु का समर्थन करने वाला प्रतिज्ञा का निषेध कैसे कर सकता है? यदि प्रतिज्ञा का प्रयोग नहीं किया जाएगा तो कैसे विविक्त होगा कि हेतु या साध्य कहाँ रहता है ? शंका-प्रसंग आदि से गम्यमान प्रतिज्ञा (पक्ष) में हेतु और साध्य का रहना समझा जा सकता है । समाधान तो इसी प्रकार गम्यमान हेतु का समर्थन किया जा सकता है । फिर हेतु का प्रयोग करके समर्थन करने की क्या आवश्यकता ? शंका - मन्दबुद्धियों को समझाने के लिए गम्यमान हेतु का प्रयोग करना आवश्यक है । समाधान तो इसीलिए प्रतिज्ञाआदि का प्रयोग करने में आपक क्यों असन्तोष होता है ? (मन्दगतियों को समझाने के लिए प्रतिज्ञा और निगमन का प्रयोग भी स्वीकार करो । ) १०७–असाधनांगवचन को एक दूसरी व्याख्या भी है, जो इस प्रकार है-साधर्म्य ( विधिरूप) से हेतु का प्रयोग कर देने पर भी वैधर्म्य से प्रयोग करना, अथवा वैधर्म्य से प्रयोग करने के पश्चात् भी साधर्म्य से प्रयोग करना पुनरुक्त है, अतएव वह साधन का अंग नहीं है । अर्थात् एक ही स्थल पर दोनों प्रकार का प्रयोग करना असाधनांग निग्रहस्थान है । यह व्याख्या भी समीचीन नहीं है । इस व्याख्या के अनुसार यह निग्रहस्थान किसको प्राप्त होगा - निर्दोष हेतु के. बल से अपने पक्ष को सिद्ध करने वाला वादी इससे निगृहीत होगा अथवा अपने पक्ष को सिद्ध न कर सकने वाला ही निगृहीत होगा ? साध्य की सिद्धि में बाधा न डालने वाले वचनों को अधिकता के उपालंभ मात्र से स्वपक्ष को सिद्ध करने वाला वादी निगृहीत नहीं हो सकता । क्योंकि वचनों को अधिकता का पक्ष सिद्धि से कोई विरोध नहीं है । शंका-यों तो नाटक आदि की घोषणा करने से भी वादी का निग्रह नहीं माना जाएगा । समाधान - ठीक है। अपने साध्य

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