Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 171
________________ १६४ प्रमाणमीमांसा ङ्गात्, तत्प्रयोगेऽपि हेतुप्रयोगमन्तरेण साध्यार्थाप्रसिद्धः; इत्यप्यसत्, पक्षधर्मोपसंहारस्याप्येवमवचनानुषङ्गात् । अथ सामर्थ्यादगम्यमानस्यापि यत् सत् तत् सर्व क्षणिक यथा घटः, संश्च शब्द इति पक्षधर्मोपसंहारस्य वचनं हेतोरपक्षधर्मत्वेनासिद्धत्वव्यवच्छेदार्थम् ; तहि साध्याधारसन्देहापनोदार्थ गम्यमानाया अपि प्रतिज्ञायाः, प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयानामेकार्थत्वप्रदर्शनार्थं निगमनस्य वचनं किं न स्यात् ?। नहि प्रतिज्ञादीनामेकार्थत्वोपदर्शनमन्तरेण सङ्गतत्वं घटते, भिन्नविषयप्रतिज्ञादिवत् । ननु प्रतिज्ञातः साध्यसिद्धौ हेत्वादिवचनममनर्थकमेव स्यात, अन्यथा नास्याः साधनाङ्गतेतिचेत्; तहि भवतोऽपि हेतुतः साध्यसिद्धौ दृष्टान्तोऽनर्थकः स्यात्, अन्यथा नास्य साधनाङ्गतेति समानम् । ननु साध्यसाधनयोाप्तिप्रदर्शनार्थत्वात् नानर्थको दृष्टान्तः, . तत्र तदप्रदर्शने हेतोरगमकत्वात्; इत्यप्ययुक्तम्, सर्वानित्यत्वसाधने सत्त्वादेदृष्टान्ता. सम्भवतोऽगमकत्वानुषङ्गात् । विपक्षव्यावृत्त्या सत्त्वादेर्गमकत्वे वा सर्वत्रापि हेतौ द्वारा कहने से पुनरुक्ति दोष होता है । प्रतिज्ञा और निगमन का प्रयोग कर देने पर भी हेतु का प्रयोग किये बिना साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती। (अतएव प्रतिज्ञा और निगमन का प्रयोग निरर्थक है।) समाधान-यह कथन असत् है । इस युक्ति से तो पक्षधर्मोपसंहार का प्रयोग भी निरर्थक ठहरेगा । शंका-'जो सत् होता है वह सब क्षणिक होता है, जैसे-घट, शब्द भी सत् है' इस प्रकार के पक्ष धर्मोपसंहार का प्रयोग निरर्थक नहीं है । इसके प्रयोग से हेतु में पक्षधर्मत्व के अभाव से आने वाली असिद्धता का व्यवच्छेद होता है। समाधान-तो साध्य कहाँ सिद्ध किया जा रहा है, इस प्रकार की शंका का निवारण करने के लिए गम्यमान प्रतिज्ञा का प्रयोग भी निरर्थक नहीं कहा जा सकता और प्रतिज्ञा, हेतु तथा उदाहरण एकार्थक है-एक ही साध्य को सिद्ध करते हैं, यह प्रकट करने के लिए निगमन का प्रयोग करना भी सार्थक है। प्रतिज्ञा आदि अवयवों की एकार्थकता दिखलाना आवश्यक है,इसके बिना उनकी संगति नहीं हो सकती। प्रतिज्ञा का विषय कुछ और हो, हेतु का विषय अन्य हो और उदाहरण का विषय भिन्न हो तो धे कैसे संगत हो सकते हैं? शंका-यदि प्रतिज्ञा के प्रयोग से साध्य की सिद्धि मान ली जाए तो हेतु आदि का प्रयोग करना निरर्थक हो जाएगा। यदि प्रतिज्ञा से साध्य की सिद्धि नहीं होती तो उसे साधन का अंग नहीं कहा जा सकता । समाधान-यदि हेतु से साध्य सिद्धि होती है तो दृष्टान्त का प्रयोग निरर्थक . हो जाना चाहिए । अन्यथा वह साधन का अंग नहीं कहा जा सकता। यह दोष आपके मत में भी समान रूप से लागू होता है । शंका-दृष्टान्त का प्रयोजन साध्य और साधन की व्याप्ति को प्रदर्शित करना है, अतएव उसे निरर्थक कैसे कहा जा सकता है ? यदि दृष्टान्त के प्रयोग द्वारा : साध्य-साधन की व्याप्ति प्रदर्शित न की जाय तो हेतु गमक ही नहीं होगा। समाधान-यह कथन अयुक्त है । जब आप 'सत्त्व' हेतु से समस्त पदार्थों की क्षणिकता सिद्ध करते हैं तो वहाँ कोई दृष्टान्त संभव नहीं है (क्योंकि समस्त पदार्थ पक्ष के अन्तर्गत हो जाते हैं)। ऐसी स्थिति में भापका हेतु गमक नहीं होगा। (किन्तु दृष्टान्त के अभाव में भी आपने सत्त्व हेतु को गमक

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