Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
"लिङ्गस्यानन्वया अष्टावष्टावव्यतिरेकिणः।
नान्यथानुपपन्नत्वं कथंचित् ख्यापयन्त्यमी ॥” इति ॥२७॥ ... ६०-भवसितं परार्थानुमानमिदानों तन्नान्तरीयकं दूषणं लक्षयतिर साधनदोषोद्भावनं दूषणम् ॥२८॥
६१-'साधनस्य' परार्थानुमानस्य ये असिद्धविरुद्धादयो 'दोषाः' पूर्वमुक्तास्ते पामुद्भाव्यते प्रकाश्यतेऽनेनेति 'उद्भावनम्' साधनदोषोद्भावकं वचनं 'दूषणम्'। उत्तरत्राभूतग्रहणादिह भूतदोषोद्भावना दूषणेति सिद्धम् ॥२८॥
६२-दूषणलक्षणे दूषणाभासलक्षणं सुज्ञानमेव भेदप्रतिपादनाथं तु तल्लक्षणमाह___ अभूतदोषोद्भावनानि दूषणाभासा जात्युत्तराणि ||२९||
६३-अविद्यमानानां साधनदोषाणां प्रतिपादनान्यदूषणान्यपि दूषणवदाभासमानानि 'दूषणाभासाः' । तानि च 'जात्युत्तराणि' । जातिशब्दः सादृश्यवचनः । उत्तरसहशानि जात्युत्तराणि । उत्तरस्थानप्रयुक्तत्वात् । उत्तरसदृशानि जात्युत्तराणि । जात्या सादृश्यनोत्तराणि जात्युत्तराणि । तानि च सम्यग्घेतौ हेत्वाभासे वा वादिना
साधन के अनन्वय आठ हैं और अव्यतिरेक भी आठ ही हैं । यह आठ-आठ दृष्टान्ताभास कथंचित् अविनामाव संबंध के अभाव को सूचित करते हैं ॥२७॥
६०-परार्थानुमान पूर्ण हुवा। अब परार्थानुमानसंबंधी दोष के स्वरूप का निरूपण करते हैंसूत्रार्थ--साधन के दोषों को प्रकाशित करना दूषण कहलाता है ॥२८॥
६१-साधन अर्थात् परार्थानुमान के जो असिद्धता विरुद्धता आदि दोष पहले बतलाए जा चुके हैं, उन दोषों को प्रकट करने वाला वचन 'दूषण'कहा जाता है । अगले सूत्र में 'अभूत, शब्द ही ग्रहण किया है,अतएव यहाँ भूत-सद्भूत विद्यमान दोषों को प्रकट करना दूषण है, ऐसा समझ लेना चाहिए ॥२८॥
६२-दूषण का लक्षण समझ लेने पर दूषणाभास सहज ही समझा जा सकता है, किन्तु उसके भेदों का निरूपण करने के लिए लक्षण का प्रतिपादन करते हैं
सूत्रार्थ-अविद्यमान दोषों का उद्भावन करना जात्युत्तर है । वही दूषणाभास है ॥२९॥
६३-जो वास्तव में दूषण न हो किन्तु दूषण जैसे प्रति मासित हो वह दूषणाभास कहलाता है। उसे जात्युत्तर भी कहते हैं। तात्पर्य यह है कि साधन में दोष न होने पर भी दोष का आरोप करना दूषणामास है।
जात्युत्तर पद में 'जाति, शब्द सदृशता का वाचक है अतः जो उत्तर के सदृश हों वे 'जात्युत्तर, कहलाते हैं । उत्तर के स्थान पर प्रयुक्त होने के कारण वे उत्तर के समान होते अथवा जाति अर्थात् सदृशता के कारण जो उत्तर रूप समझे जायें उन्हें जात्युत्तर समझना चाहिए।
वादी ने समीचीन हेतु अथवा हेत्वाभास का प्रयोग किया। प्रतिवादी को जल्दी में कोई वास्तविक दोष उसमें नहीं सूझा । तब वह हेतुसरीखे प्रतीत होने वाला कुछ भी अंटसंट प्रयोग