Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 145
________________ १३८ प्रमाणमीमांसा साधर्म्यसमा वैधर्म्यसमा वा या जातिः पूर्वमुदाहृता सैव संशयेनोपसंन्हियमाना संशयसमा जातिर्भवति । यथा कि घटसाधर्म्यात् कृतकत्वादनित्यः शब्द उत तद्वैधयदाकाशसाधमर्याद्वा निरवयवत्वान्नित्य इति ? १४ । द्वितीयपक्षोत्थापनबुद्धया प्रयुज्यमाना सैव साधर्म्यसमा वैधर्म्यसमा वा जातिः प्रकरणसमा भवति । तत्रैव अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवदिति प्रयोगे - नित्यः शब्दः श्रावणत्वाच्छब्दत्ववदिति उद्भावनप्रकारभेदमात्रे सति नानात्वं द्रष्टव्यम् १५ । त्रैकाल्यानुपपत्त्या हेतोः प्रत्यबस्थानम हेतुसमा जातिः । यथा हेतुः साधनम् । तत् साध्यात्पूर्वं पश्चात् सह वा भवेत् ? । यदि पूर्वम्; असति साध्ये तत् कस्य साधनम् ? । अथ पश्चात्साधनम् ; पूर्व तह साध्यम्, तस्मिंश्च पूर्वसिद्धे किं साधनेन ? । अथ युगपत्साध्यसाधने; तहि तयोः सव्येतर गोविषाणयोरिव साध्यसाधनभाव एव न भवेदिति १६ | अर्थापत्त्या प्रत्यव - स्थानमर्थापत्तिसमा जातिः । यद्यनित्यसाधर्म्यात्कृतकत्वादनित्यः शब्दः, अर्थादापद्यते नित्यसाधयन्नित्य इति । अस्ति चास्य नित्येनाकाशादिना साधम्यं निरवयवत्वमित्युद्भावनप्रकारभेद एवायमिति १७ । अविशेषापादनेन प्रत्यवस्थानमविशेषसमा (१४) संशयसमा - पहले जो साधर्म्यसमा और वैधर्म्यसमा जाति कही है, उसका उपसंहार यदि संशय के रूप में हो तो संशयसमा जाति कहलाती है । यथा-घट के समान कृतक होने से शब्द अनित्य है या घट के विलक्षण आकाश के समान निरवयव होने से नित्य है; (१५) प्रकरणसमा - दूसरे पक्ष को खड़ा करने की बुद्धि से प्रयोग में लाई जाने वाली वही साधर्म्यसमा या वैधर्म्यसमा जाति प्रकरणमा कहलाती है । यथा शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक है, जैसे--घट | इस प्रकार अनुमान प्रयोग करने पर जातिवादी कहता है---शब्द नित्य है, क्योंकि श्रावण हैं, जैसे- शब्दत्व । यद्यपि बात वही है फिर भी दोषोद्भावन के तरीके में भेद होने से इस जाति को भिन्न कहा है । ( १६ ) अहेतुसमा - हेतु को त्रैकालिक अनुपपत्ति (असंगति) प्रदर्शित कर के निरसन करना । यथा - हेतु का मतलब साधन है । वह साधन साध्य से पहले होगा, पश्चात् होगा अथवा साथसाथ होगा? यदि पहले होना कहो तो साध्य के अभाव में वह किसका साधन होगा ? (जब साध्य ही नहीं तो साधन कैसा ? ) अगर साधन पश्चात् होता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि साध्य, साधन से पहले ही विद्यमान है तो साधन की आवश्यकता ही क्या है? कदाचित् साध्य और साधन का साथ-साथ होना माना जाय तो गाय के दाहिने और बांये सींगों के समान साथ-साथ होने वाले दो पदार्थों में साध्य-साधनभाव कैसे हो सकता है ? (१७) अर्थापत्तिसमा- अर्थापत्ति द्वारा निराकरणकरना अर्थापत्तिसमा जाति है । यथा यदि अनित्य के समान कृतक होने से शब्द अनित्य है तो इसका अर्थ यह हुआ कि नित्य के समान होने से नित्य है । शब्द की नित्य आकाश से निरवयत्वधर्म के लिहाज से समानता तो है ही ! यहाँ भी उद्भावना के प्रकार में ही भिन्नता है । १८- अविशेषसमा - विशेषता का अभाव कह कर निरास करना । जैसे - यदि शब्द और

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