Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा ५२-नित्यः शब्दः अमूर्तत्वादित्यस्मिन् प्रयोगे कर्मादयो यथासङ्घय साध्यादि विकलाः । तत्र कर्मवदिति साध्यविकलः, अनित्यत्वात् कर्मणः। परमाणुवदिति साका नविकलः, मूर्तत्वात् परमाणूनाम् । घटवदिति साध्यसाधनोभयविकल, अनित्यत्कान्मूर्तत्वाच्च घटस्येति । इति त्रयः साधर्म्यदृष्टान्ताभासाः ॥२३॥
वैधाण परमाणुकर्माकाशाः साध्याद्यव्यतिरेकिणः ॥२४॥
५३-नित्यः शब्दः अमूर्त्तत्वादित्यस्मिन्नेव प्रयोगे 'परमाणुकर्माकाशाः' साध्य. साधनोभयाव्यतिरेकिणो दृष्टान्ताभासा भवन्ति । यन्नित्यं न भवति तदमूर्तमपि न भवति यथा परमाणुरिति साध्याव्यतिरेकी, नित्यत्वात् परमाणूनाम् । यथा कर्मेति साधनाव्यावृत्तः, अमूर्तत्वात् कर्मणः । यथाकाशमित्युभयाव्यावृत्तः, नित्यत्वादमूर्तत्वाच्चाकाशस्येति त्रय एव वैधर्म्यदृष्टान्ताभासाः ॥२४॥
५४-तथावचनाद्रागे रागान्मरणधर्मकिञ्चिज्ज्ञत्वयोः सन्दिग्धसाध्याद्यन्वयव्यतिरेका
रथ्यापुरुषादयः ॥२५॥ ५२- शब्द नित्य है, क्योंकि अमूर्त है,जैसे कर्म । इस अनुमानप्रयोग में कर्म दृष्टान्त साध्यविकल है, क्योंकि कर्म नित्य नहीं, अनित्य है । परमाणुदृष्टान्त साधनविकल है, क्योंकि परमाणु अमूर्त नहीं, मूर्त है घट दृष्टान्त उमयविकल है क्योंकि घट न नित्य है और न अमूर्त ही है अतएव यह तीन साधर्म्य दृष्टान्ताभास हैं । तात्पर्य यह है कि साधर्म्य दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों को सत्ता होनी चाहिए, किन्तु यहाँ ग्रहण किये दृष्टान्तों में वह नहीं है, अतएव ये दृष्टान्ताभास हैं ॥२३॥
सूत्रार्थ-वैधर्म्य से परमाणु कर्म और आकाश क्रमशः साध्याव्यतिरेकी साधनान्यतिरेकी और उभयाव्यतिरेकी हैं॥२४।
__५३--शब्द नित्य है, क्योंकि अमूर्त है, इसी पूर्वोक्त प्रयोग में परमाणु कर्म और आकाश ये व्यतिरेकदृष्टान्ताभास हैं 'जो नित्य नहीं होता वह अमूर्त नहीं होता जैसे-'परमाणु' यहीं 'परमाणु' साध्याव्यतिरेको दृष्टान्ताभास है क्योंकि परमाणु नित्य होते हैं। जो नित्य नहीं होता वह अमूर्त नहीं होता जैसे कर्म', यहाँ. 'कर्म' साधनाव्यतिरेकी है क्योंकि कर्म अमर्त है । 'जो नित्य नहीं होता वह अमर्त नहीं होता,जैसे आकाश। यहाँ आकाश उभयाव्यतिरेकी दृष्टान्ताभास है, क्योंकि आकाश नित्य भी है और अमर्त भी है। अतएव यह तीनों वैधर्म्य दृष्टान्ताभास हैं। तात्पर्य यह है कि वैधर्म्य दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों का अभाव होना चाहिए, किन्तु यहाँ अभाव नहीं है, अतएव ये वैधर्म्य दृष्टान्त कहे गए हैं। ॥२४॥
५४-इसी प्रकार (निम्न भी आभास हैं) सूत्रार्थ---'वचन' हेतु से राग सिद्ध करने में और 'राग'हेतु से मरणधर्मता तथा असर्वज्ञता सिद्ध करने में रथ्यापुरुष आदि दृष्टान्त संदिग्ध साध्यान्वयव्यतिरेकी, संदिग्धसाधनान्वयव्यतिरेकी और संदिग्ध-उभयव्यतिरेकी दृष्टान्ताभास हैं ॥२५॥
श्वैशेषिकसम्मत कर्मपदार्थ ।