Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
१२१ शुद्धयः पञ्च । यतो न शङ्कितसमारोपितदोषाः पञ्चाप्यवयवाः स्वां स्वामनादीनधामर्थविषयां धियमाधातुमलमिति प्रतिज्ञादीनां तं तं दोषमाशङ्कय तत्परिहाररूपाः पञ्चैव शुद्धयः प्रयोक्तव्या इति दशावयवमिदमनुमानवाक्यं बोध्यानुरोधात् प्रयोक्तव्यमिति ॥१५॥ ___३४-इह शास्त्रे येषां लक्षणमुक्तं ते तल्लक्षणाभावे तदाभासाः सुप्रसिद्धा एव । यथा प्रमाणसामान्यलक्षणाभावे संशयविपर्ययानध्यवसायाः प्रमाणाभासाः, संशयादिलक्षणाभावे संशयाद्याभासाः,प्रत्यक्षलक्षणाभावे प्रत्यक्षाभासम्,परोक्षान्तर्गतानां स्मृत्या दीनां स्वस्वलक्षणाभावे तत्तदाभासतेत्यादि । एवं हेतूनामपि स्वलक्षणाभावे हेत्वाभासता सुज्ञानैव । केवलं हेत्वाभासानां सङ्ख्यानियमः प्रतिव्यक्तिनियतं लक्षणं नेषत्करप्रतिपत्तीति तल्लक्षणार्थमाह
असिद्धविरुद्धानेकान्तिकास्त्रयो हेत्वाभासाः ॥१६॥ ३५-अहेतवो हेतुवदाभासमानाः 'हेत्वाभासाः'असिद्धादयः । यद्यपि साधनदोषा एवैते अदुष्टे साधने तदभावात्, तथापि साधनाभिधायके हेतावुपचारात् पूर्वाचार्यैरभिहितास्ततस्तत्प्रसिद्धिबाधामनाश्रयद्भिरस्माभिरपि हेतुदोषत्वेनैवोच्यन्त इति ।
इन्हीं पाँच अवयवों की पाँच शुद्धियाँ होती हैं,क्योंकि इन अवयवों में दोष की आशंका हो या दोष का आरोपण किया गया हो तो वे निर्दोष और निश्चित ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकते । अत-. एव इन अवयवों में दोष की आशंका करके उनका परिहार करना चाहिए । यही पाँच शुद्धियों का कथन करना है। इस प्रकार शिष्य के अनुरोध से अनुमान-वाक्य के दस अवयव हो जाते हैं ॥१५॥
३४-इस शास्त्र में जिसका जो लक्षण कहा है, उस लक्षण के अभाव में वह तदाभास हो जाता है । जैसे प्रमाणसामान्य के लक्षण के अभाव में संशय विपर्यय और अनध्यवसाय प्रमाणामास हैं जिसमें संशय का लक्षण घटित न हो वह संशयाभास है। प्रत्यक्ष के लक्षण के अभाव में प्रत्यक्षाभास है, परोक्ष के अन्तर्गत स्मरण आदि में उनका लक्षण न पाया जाय तो उन्हें स्मरणाभास आदि समझना चाहिए। इसी प्रकार हेतुओं में यदि हेतु का पूर्वोक्त लक्षण न हो तो वे हेत्वाभास हो जाते हैं। हेत्वाभासों की संख्या और उनके पृथक् पृथक् लक्षण को समझने में कुछ कठिनाई होती है, अतएव उनका यहाँ निरूपण किया जाता है
सूत्रार्थ-असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक, ये तीन हेत्वाभास हैं ॥१६॥
३५-जो वस्तुतः हेतु तो न हों किन्तु हेतु के समान प्रतीत होते हों, वे असिद्ध आदि हेत्वाभास कहलाते हैं । यद्यपि असिद्धता आदि साधन के दोष हैं, फिर भी पूर्वाचार्योंने साधन के वचन रूप हेतु में उपचा र करके इन्हें हेत्वाभास कहा है । अतः उनकी प्रसिद्धि में कोई बाधा न डालते हुए हमने भी उन्हें हेतुदोष ही कह दिया है ।