Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा ४१-'वादी' पूर्वपक्षस्थितः 'प्रतिवादी' उत्तरपक्षस्थितः उभयं द्वावेव वादिप्र. तिवादिनौ । तद्भेदादसिद्धस्य 'भेदः' । तत्र वाद्यसिद्धो यथा परिणामी शब्द उत्पत्तिमत्त्वात् । अयं साङ्घयस्य स्वयं वादिनोऽसिद्धः, तन्मते उत्पत्तिमत्त्वस्यानभ्युपेतत्वात्, नासदुत्पद्यते नापि सद्विनश्यत्युत्पादविनाशयोराविर्भावतिरोभावरूपत्वादिति तत्सिद्धान्तात् । चेतनास्तरवः सर्वत्वगपहरणे मरणात् । अत्र मरणं विज्ञानेन्द्रियायुनिरोधलक्षणं तरुषु बौद्धस्य प्रतिवादिनोऽसिद्धम् । उभयासिद्धस्तु चाक्षुषत्वमुक्तमेव । एवं सन्दिग्धासिद्धोऽपि वादिप्रतिवाद्युभयभेदात् त्रिविधो बोद्धव्यः ॥१८॥
४२-नन्वन्येऽपि विशेष्यासिद्धादयो हेत्वाभासाः कैश्चिदिष्यन्ते ते कस्मान्नोक्ता इत्याह
४१-पूर्वपक्ष का आश्रय लेने वाला वादी और उत्तर पक्ष करने वाला प्रतिवादी कहलाता है । वादी और प्रतिवादी मिल कर उभय दोनों-कहलाते हैं। इनके भेद से असिद्ध हेत्वाभास में भी भेद होते हैं, अथात् कोई हेतु वादी को सिद्ध नहीं होता, कोई प्रतिवादी को नहीं होता। ऐसा हेतु अन्यतरासिद्ध कहलाता है । कोई हेतु ऐसा भी होता है जो दोनों को ही सिद्ध नहीं होता । वह उभयासिद्ध कहलाता है । इन तीनों के उदाहरण इस प्रकार हैं
१-वाद्यसिद्ध-शब्द परिणामी है,क्योंकि उत्पत्तिमान् है यहाँ उत्पत्तिमान है' यह हेतु स्वयं वादी सांख्य को असिद्ध है,क्योंकि सांख्य किसी पदार्थ की उत्पत्ति नहीं मानता। उनकी मान्यता के अनुसार असत् की उत्पत्ति नहीं होती और सत् का विनाश नहीं होता । उत्पत्ति और विनाश आविर्भाव और तिरोभाव मात्र ही हैं । अर्थात् सत् पदार्थ का आविर्भाव (व्यक्त) हो जाना ही उसकी उत्पत्ति है और सत् पदार्थ का तिरोभाव हो जाना (अव्यक्त हो जाना)ही विनाश कहलाता है - ऐसा सांख्य का सिद्धान्त है । (ऐसी स्थिति में जब सांख्य मीमांसक के प्रति कहता है कि 'शब्द परिणामी है क्योंकि उत्पत्तिमान् है' तो यहाँ उत्पत्तिमत्त्व हेतु स्वयं उसको ही सिद्ध नहीं है।
२--प्रतिवाद्यसिद्ध--वृक्ष सचेतन हैं, क्योंकि समस्त त्वचा हटा लेने पर उनका मरण हो जाता है। इस प्रकार कहने पर प्रतिवादी बौद्ध को यह हेतु असिद्ध है। विज्ञान इंद्रिय और आयु का निरोध होना मरण कहलाता है और बौद्ध को बृक्षों का ऐसा मरण सिद्ध नहीं है।
३-उभयासिद्ध-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष है । यहाँ शब्द की चाक्षुषता न वादी को सिद्ध है, न प्रतिवादी को।
सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास भी वादी प्रतिवादी और उभय के भेद से तीन प्रकार का समझ लेना चाहिए । अर्थात् जिस हेतु की सत्ता के विषय में वादी या प्रतिवादो को संदेह हो वह अन्यतरसंदिग्धासिद्ध कहलाता है और जिसकी सत्ता दोनों के लिए संदिग्ध हो वह उभय संदिग्धासिख कहलाता है ॥१८॥
४२-विशेष्यासिद्ध, विशेषणासिद्ध आदि अन्य हेत्वाभास दूसरों ने माने हैं। उनका कथन आपने क्यों नहीं किया? इस प्रश्न का उत्तर यह है