Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
१२५ विशेष्यासिद्धादीनामेष्वेवान्तर्भावः ॥१९॥ ४३-'एष्वेव' वादिप्रतिवाद्युभयासिद्धेष्वेव । तत्र विशेष्यासिद्धादय उदाहियन्ते। विशेष्यासिद्धो यथा अनित्यः शब्दः सामान्यवत्त्वे सति चाक्षुषत्वात् । विशेषणासिद्धो यथा अनित्यः शब्दः चाक्षुषत्वे सति सामान्य विशेषवत्वात् । भागासिद्धो यथा अनित्यः शब्दः प्रयत्नानन्तरीयकत्वात् । आश्रयासिद्धो यथा अस्ति प्रधानं विश्वपरिणामित्वात् । आश्रयैकदेशासिद्धो यथा नित्याः प्रधानपुरुषेश्वराः अकृतकत्वात् । व्यर्थविशेष्यासिद्धो यथा अनित्यः शब्दः कृतकत्वे सति सामान्यवत्त्वात्। व्यर्थविशेषणासिद्धो यथा अनित्यः शब्दः सामान्यवत्त्वे सति कृतकत्वात् । सन्दिग्धविशेष्यासिद्धो यथा अद्यापि रागादियुक्तः कपिलः पुरुषत्वे सत्यद्याप्यनुत्पन्नतत्त्वज्ञानत्वात् । सन्दिग्धविशेषणासिद्धो यथा अद्यापि रागादियुक्तः कपिल, सर्वदा तत्त्वज्ञानरहितत्वे सति पुरुषत्वादित्यादि । एतेऽसिद्धभेदा यदान्यतरवाद्यसिद्धत्वेन विवक्ष्यन्ते तदा वाद्यसिद्धाः प्रतिवाद्यसिद्धा वा
सूत्रार्थ-विशेष्यासिद्ध आदि का इन्हीं में समावेश हो जाता है । १९॥ ___४३-इन्हीं में अर्थात् पूर्वोक्त वादी-असिद्ध, प्रतिवादी-असिद्ध और उभयासिद्ध में विशेप्यासिद्ध आदि का अन्तर्भाव हो जाता है । विशेष्यासिद्ध आदि का उदाहरण इस प्रकार है
१-विशेष्यासिद्ध-शब्द अनित्य है,क्योंकि वह सामान्य (शब्दत्व)वाला होते हुए चाक्षुष है। यहाँ चाक्षुषत्व यह विशेष्य है और वह शब्द में सिद्ध नहीं है। २-विशेषणासिद्ध-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष होते हुए सामान्य-विशेष शब्दत्वनामक अपरसामान्य वाला है। यहाँ हेतु का विशेषण चाक्षुष होते हुए,यह असिद्ध है। ३-भागासिद्ध-शब्द अनित्य है क्योंकि वह प्रयत्न जनित है । यहाँ प्रयत्नजन्यत्व मेघ-विद्युत् आदि के शब्दों में नहीं होता, अतएव यह हैतु भागासिद्ध या एकदेशासिद्ध है (४) आश्रयासिद्ध-प्रधान (प्रकृति) है, क्योंकि वह विश्व का परिणामी कारण है। (यहाँ हेतु का आश्रय-प्रधान नैयायिक आदि को सिद्ध नहीं है। (५)आश्रयंकदेशासिद्ध-प्रधान पुरुष और ईश्वर नित्य हैं। क्योंकि वे अकृतक है। (यहाँ हेतु के तीन आश्रय हैं, उनमें से नैयायिकादि को प्रधान सिद्ध नहीं है, अतः आश्रय का एक देश असिद्ध है। (६)व्यर्थविशेष्यासिद्ध-शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक होते हुए सामान्यवान् है। (यहाँ 'क्योंकि कृतक है, इतना हेतु ही पर्याप्त था, सामान्यवान् कहना निरर्थक है' इस प्रकार इस हेतु का विशेष्य अंश व्यर्थ होने से असिद्ध है) (७) व्यर्थविशेषणासिद्ध-शब्द अनित्य है, क्योंकि सामान्यवान् होते हुए कृतक है। (यहाँ सामान्यवान होते हुए विशेषण है और कृतकत्व विशेष्य है, किन्तु विशेषण निरर्थक है ) (८) सदिग्धविशेष्यासिद्ध-आज भी कपिल रागादि से युक्त है, क्योंकि पुरुष होते
तत्त्वज्ञान उत्पन्न नहीं हआ है। (यहाँ कपिल को तत्त्वज्ञान का उत्पन्न न होना संदिग्ध है)।(९) संदिग्धविशेषणासिद्ध-आज भी कपिल रागादि से युक्त है, क्योंकि वह सर्वदा तत्त्वज्ञान से रहित होते हुए पुरुष है। ( यहाँ पूर्ववत् विशेषण संदिग्ध है।)
ये जो असिद्ध हेत्वाभास के भेद कहे गए हैं, इनमें से जो वादी या प्रतिवादी को सिद्ध नहीं है
हुये उन्हें तत्त्वज्ञान उ