Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 124
________________ प्रमाणमीमांसा ११७ इत्युक्तेऽपि धर्मिविषयसन्देह एव-किमनित्यः शब्दो घटो वेति?, तन्निराकरणाय गम्यमानस्यापि साध्यस्य निर्देशो युक्तः, साध्यमिणि साधनधर्मावबोधनाय पक्षधर्मोपसंहारवचनवत् । यथा हि साध्यव्याप्तसाधनदर्शनेन तदाधारावगतावपि नियतमिसम्बन्धिताप्रदर्शनार्थम्-कृतकश्च शब्द इति पक्षधर्मोपसंहारवचनं तथा साध्यस्य विशिष्टमिसम्बन्धितावबोधनाय प्रतिज्ञावचनमप्युपपद्यत एवेति ॥८॥ १९-ननु प्रयोगं प्रति विप्रतिपद्यन्ते वादिनः, तथाहि-प्रतिज्ञाहेतूदाहरणानीति त्र्यवयवमनुमानमिति साङ्ख्याः । सहोपनयेन चतुरवयवमिति मीमांसकाः । सहनिगमनेन पञ्चावयवमिति नैयायिकाः । तदेवं विप्रतिपत्तौ कीदृशोऽनुमानप्रयोग इत्याह एतावान् प्रेक्षप्रयोगः ॥९॥ विषय में सन्देह बना ही रहता है कि शब्द अनित्य है या घट ? किसमें अनित्यता सिद्ध की जा रही है ? अतएव साध्य के आचारसंबंधी संदेह को दूर करने के लिए पक्ष का कथन करना ही उचित है । जैसे पक्ष में साधन को समझाने के लिए उपनय का प्रयोग किया जाता है अर्थात् 'जो कृतक होता है वह अनित्य होता है,इसप्रकार साध्य के अविनाभावी साधन को प्रदर्शित करने से साधन का आधार प्रतीत हो जाता है, फिर भी नियत पक्ष के साथ साधन का संबंध दिखलाने के लिए ,शब्द भी कृतक है, इस प्रकार उपनय का प्रयोग किया जाताहै' उसी प्रकार साध्य का नियत पक्ष के साथ सम्बन्ध दिखलाने के लिए प्रतिज्ञा का भी प्रयोग करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि बोट परार्थानमान में प्रतिज्ञा के प्रयोग को अनावश्यक मानते हैं। उनकी यक्ति यह है कि व्याप्तिपर्वक उपनय का प्रयोग करने से ही पक्ष (साध्य के आध का पता चल जाता है, फिर उसको अलग कहने से क्या लाभ है? इसका उत्तर यह दिया गया है कि व्याप्ति के प्रयोग से साधन के आधार का पता चल जाने पर भी उसे अमुक धर्मो में निश्चित रूपसे समझाने के लिए आप उपनय का प्रयोग करते हैं, क्योंकि उपनय के विना यह ज्ञात नहीं होता कि साधन का आधार क्या है? इसी प्रकार साध्य के निश्चित आधार को प्रदशित करने के लिए प्रतिज्ञा का प्रयोग करना भी आवश्यक है । यदि प्रतिज्ञा का प्रयोग न किया जाएगा तो कैसे पता चलेगा कि साध्य किस जगह साधा जारहा है ? अतएव प्रतिज्ञा का प्रयोग करना भी आवश्यक ही है ॥८॥ १९-शंका-प्रयोग के विषय में वादियों का मतभेद है । यथा-सांख्यों का कथन है कि अनुमान के तीन अवयव हैं-प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण । मीमांसकों के मतानुसार पूर्वोक्त तीन के साथ उपनय भी अनुमान का अवयव है । नयायिक इनमें निगमन को सम्मिलित करके पाँच अवयव कहते हैं। इस प्रकार की मत विभिन्नता में अनुमान प्रयोग किस प्रकार का मानना चाहिए? इसका समाधान करने के लिए कहते हैं: सूत्रार्थ-प्रेक्षावान् प्रतिपाद्य के लिए इतना ही अनुमान प्रयोग है ॥९॥

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