Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा बुद्धिमत्कारणपूर्व क्षित्यादि कार्यत्वादित्यत्राऽशरीरसर्वज्ञपूर्वकत्वमिति ।
५५-'असिद्धम् इत्यनेनानध्यवसाय-संशय-विपर्ययविषयस्य वस्तुनः साध्यत्वम्, न सिद्धस्य यथा श्रावणः शब्द इति । नानुपलब्धे न निर्णीते न्यायःप्रवर्तते" (न्यायभा० १.१.१.) इति हि सर्वपार्षदम् ।
५६–'अबाध्यम' इत्यनेन प्रत्यक्षादिबाधितस्य साध्यत्वं मा भूदित्याह । एतत् साध्यस्य लक्षणम् । पक्षः' इति साध्यस्यैव नामान्तरमेतत् ॥१३॥
५७-अबाध्यग्रहणव्यवच्छेद्यां बाधां दर्शयति
प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनप्रतीतयो बाधा ॥१४॥
५८-प्रत्यक्षादीनि तद्विरुद्धार्थोपस्थापनेन बाधकत्वात् 'बाधाः । तत्र प्रत्यक्षबाधा यथा अनुष्णोऽग्निः, न मधु मधुरम् ,न सुगन्धि विदलन्मालतीमुकुलम्, अचाक्षुषो घटः, अश्रावणः शब्दः,नास्ति बहिरर्थ इत्यादि । अनुमानबाधा यथा सरोम हस्ततलम् ,नित्यः शब्द इति वा । अत्रानुपलम्भेन कृतकत्वेन चानुमानबाधा । आगमबाधा यथा प्रेत्याऽसुखप्रदो धर्म इति । परलोके सुखप्रदत्वं धर्मस्य सर्वागमसिद्धम् । लोकअर्थात् आत्मा के लिए। तथा--पृथ्वी आदि बुद्धिमत्कर्तृक हैं, क्योंकि कार्य हैं.यहां बुद्धिमत्कर्तृत्व' साध्यशब्द से कहा गया है, फिर भी 'अशरीरसर्वज्ञकर्तृत्व' साध्य माना जाता है।
५५--'असिद्ध' इस विशेषण से यह सूचित किया गया है कि जिस विषय में प्रतिवादी को अनध्यवसाय, संशय या विपर्यय हो, वही साध्य होता है। जो प्रतिवादी को सिद्ध है वह साध्य नहीं होता। जैसे 'शब्द श्रावण है, यहाँ शब्द का श्रावणत्व निर्विवाद सिद्ध है अतः साध्य नहीं हो सकता । यह सर्वसम्मत है कि सर्वथा अनुपलब्ध अज्ञात और सर्वथानिणर्णीत वस्तु में हेतु को प्रवृत्ति नहीं होती।
५६-'अवाध्य' इस विशेषण से प्रकट किया गया है कि जो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से बाधित है, वह साध्य नहीं होता । 'पक्ष' साध्य का ही पर्यायवाचक शब्द है ॥१३॥
५७- अबाध्य'विशेषण से व्यवच्छेद बाधाएँ-सूत्रार्थ-प्रत्यक्षबाधा,अनुमानबाधा,आगमबाधा, लोकबाधा. स्ववचनबाधा और प्रतीति बाधा-यह सब साध्यसंबंधी बाधाएँ हैं। ॥१४॥
५८-प्रत्यक्ष आदि साध्य से विपरीत अर्थ उपस्थापक होकर बाधक होने के कारण बाधा कहलाते हैं । अर्थात् जब प्रत्यक्ष साध्य से विपरीत अर्थ का साधक होता है तब वह प्रत्यक्ष बाधा है। इसी प्रकार अनुमानबाधा आदि समझना चाहिए। प्रत्यक्षबाधा, जैसे-अग्नि उष्ण नहीं है, मधु मधुर नहीं है, मालती-मुकुल सुगंधयुक्त नहीं है,घट अचाक्षुष है, शब्द श्रावण नहीं है, (ज्ञान से) भिन्न पदार्थ नहीं है, इत्यादि । अनुमानबाधा, जैसे-हथेली सरोम है, शब्द नित्य है। यहाँ 'सरोम' यह साध्य अनुपलंम से बाधित है और 'नित्यत्व' साध्य 'कृतकत्व' हेतु से बाधित है। आगमबाधा, जैसे-'धर्म परलोक में दुःखदायी है, 'यहाँ साध्य आगम से बाधित है, क्योंकि समी आगम धर्म को परलोक में सुखदायी कहते हैं। लोकबाधा, जैसे-'मनुष्य के
१-ये क्रमशः स्पर्शेन्द्रियप्रत्यक्षबाधा, रसनेन्द्रियप्रत्यक्षबाधा आदि के उदाहरण हैं।