Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
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-६५-ननु धर्मिणि साक्षादसति भावाभावोभयधर्माणामसिद्धविरुद्धानकान्तिकत्वेनानुमानविषयत्वायोगात् कथं सत्त्वासत्त्वयोः साध्यत्वम्?। तदाह
"नासिद्ध भावधर्मोऽस्ति व्याभिचार्युभयाश्रयः। विरुद्धो धर्मोऽभावस्य सा सत्ता साध्यते कथम्?॥"(प्रमाणवा० १.१९२-३.) इति ।
६६-नैवम, मानसप्रत्यक्षे भावरूपस्यैव धर्मिणः प्रतिपन्नत्वात । न च तत्सिद्धी तत्सत्त्वस्यापि प्रतिपन्नत्वाद् व्यर्थमनुमानम,तदभ्युपेतमपि वैयात्याद्यो न प्रतिपद्यते तं प्रत्यनुमानस्य साफल्यात् । न च मानसज्ञानात् खरविषाणादेरपि सद्भावसम्भावनातोऽतिप्रसङ्गः, तज्ज्ञानस्य बाधकप्रत्ययविप्लावितसत्ताकवस्तुविषयतया मानसप्रत्यक्षाभासत्वात् । कथं तहि षष्ठभूतादेर्धमित्वमिति चेत् ; धर्मिप्रयोगकाले बाधकप्रत्ययानुदयात्सत्त्वसम्भावनोपपत्तेः । न च सर्वज्ञादौ साधकप्रमाणासत्त्वेन सत्त्वसंशीतिः,सुनिश्चिताऽसम्भवद्वाधक प्रमाणसत्त्वेन सुख दाविव सत्त्वनिश्चयात्तत्र संशयायोगात्। .
६५-प्रश्न -धर्मी की साक्षात् सत्ता नहीं है तो उसमें हेतुओं के भावधर्म, अमावधर्म और उभयधर्म क्रमशः असिद्ध विरुद्ध और अनेकान्तिक हो जायेंगे अतएव वह अनमव का विषय ही नहीं रहेगा तो सत्ता या असत्ता को कैसे सिद्ध किया जा सकेगा ? कहा भी है-..
प्रमाण से असिद्ध धर्मो में हेतु यदि भावरूपधर्म होगा तो वह असिद्ध हो जाएगा, अभावधर्म रूप होगा तो विरुद्ध हो जाएगा और यदि उभयधर्मरूप होगा तो व्यभिचारी हो जायगा। ऐसी स्थिति में सर्वज्ञ को सत्ता किस प्रकार सिद्ध की जा सकती है ?'
६६-समाधान-मानस प्रत्यक्ष में भावरूप धर्मी ही प्रतिभासित होता है, कदाचित् कहा जाय कि यदि भावरूप धर्मो का प्रतिभास मान लिया जाय तो उसकी सत्ता भी सिद्ध हो जायगी। फिर उसकी सत्ता सिद्ध करने के लिए अनुमान का प्रयोग करना व्यर्थ हो जाएगा, किन्तु ऐसा कहना योग्य नहीं, क्योंकि स्वीकार किये हुए सत्त्व को भी जो हठ करके नहीं मानता उसके लिए अनुमान व्यर्थ नहीं होता।
शंका-मानस ज्ञान से खरविषाण आदि के अस्तित्व की भी संभावना की जा सकेगी तो अतिप्रसंग (अनिष्टापत्ति) होगा। समाधान-खरविषाण का ज्ञान ऐसी वस्तु को विषय करता है. जिसकी सत्ता बाधक प्रमाण से खंडित है, अतएव वह मानस प्रत्यक्ष नहीं, प्रत्यक्षाभास है।
. शंका-ऐसा है तो षष्ठभूत मानसप्रत्यक्ष भी प्रत्यक्षाभास है । अतः उसे धर्मी कैसे बनाया जा सकता है ? समाधान-पक्षप्रयोग के समय बाघक ज्ञान उत्पन्न नहीं होता,अतएव उसमें सत्त्व की संभावना हो सकती है। साधक प्रमाण न होने के कारण सर्वज्ञ आदि के अस्तित्व में सन्देह होता है, यह कहना संगत नहीं, क्योंकि जैसे सुख दुःख-आदि के अस्तित्व में बाधक प्रमाण का अमाव सुनिश्चित होने से उनकी सत्ता है उसमें संशय नहीं होता, इसी प्रकार सर्वज्ञादि के विषयः में भी सन्देह नहीं हो सकता।