Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 105
________________ ९८ प्रमाणमीमांसा यथैव किञ्चित् कारणमुद्दिश्य किञ्चित्कार्यम्, तथैव किञ्चित् कार्यमुद्दिश्य किञ्चित कारणम् । यद्वदेवाजनकं प्रति न कार्यत्वम्, तद्वदेवाजन्यं प्रति न कारणत्वमिति नानयोः कश्चिद्विशेषः । अपि च रसादेकसामग्रयनुमानेन रूपानुमानमिच्छता न्यायवादिनेष्टमेव कारणस्य हेतुत्वम् । यदाह "एकसामग्यधीनस्य रूपादेरसतो गतिः । हेतुधर्मानुमानेन धूमेन्धनविकारवत् ॥" (प्रमाणवा० १.१० ] इति । ४३-न च वयमपि यस्य कस्यचित् कारणस्य हेतुत्वं ब्रूमः । अपि तु यस्य न मन्त्रादिना शक्तिप्रतिबन्धो न वा कारणान्तरवैकल्यम् । तत् कुतो विज्ञायत इति चेत् अस्ति तावद्विगुणादितरस्य विशेषः। तत्परिजनं तु प्रायः पांशुरपादानामप्यस्ति। यदाहुःजो कार्य जिस कारण के होने पर भी न हो, वह वास्तव में उस कार्य का कारण ही नहीं कहा जा सकता। जैसे किसी कारण के प्रति ही कोई कार्य कहलाता है वैसे ही किसी कार्य के प्रति ही कोई कारण कहलाता है । जैसे अजनक की अपेक्षा कार्यत्व नहीं माना जाता,उसी प्रकार अजन्य के प्रति कारणत्व भी नहीं माना जाता । तात्पर्य यह है कि जो वस्तु नियमपूर्वक जिस कारण से उत्पन्न होती है,वही उसका कार्य कहलाती है। यदि उस कारण के होने पर भी वह वस्त उत्पन्न न हो तो वह उसका कार्य नहीं कहलाती। इसी प्रकार कारण वही है जो अवश्यमेव कार्य को उत्पन्न करे। यदि उसके होने पर भी कार्य को उत्पत्ति न हो तो उसे कारण ही नहीं कहा जा सकता। इस दृष्टि से कार्य हेतु और कारण हेतु में कोई अन्तर नहीं है-दोनों ही अव्यभिचरित हैं। इसके अतिरिक्त एक बात और भी है। वौद्ध वर्तमानकालीन रस से उसको उत्पादक सामग्री का अनुमान करते हैं। वह सामग्री पूर्वक्षणवर्ती रस और रूपादिक हैं, क्योंकि पूर्वक्षणवर्ती रस वर्तमानकालीन रस में उपादान कारण और रूपादि सहकारी कारण होते हैं। यह सभी मिलकर सामग्री कहलाते हैं । यह वर्तमानकालीन रस से पूर्वक्षणवर्ती रस रूप आदि का अनुमान करना कार्य से कारण का अनुमान है। तत्पश्चात् ये पूर्ववर्तीरूप से वर्तकालीन रूप का अनुमान करते हैं । अर्थात् पूर्वक्षणवर्ती रूप ने निमित्त कारण हो कर जब वर्तमानकालीन रस को उत्पन्न किया है तो उपादान कारण होकर वर्तमानकालीन रूप को भी उत्पन्न किया होगा, इसप्रकार कारण से कार्य का भी अनुमान करते हैं । अतएव उन्हें कारण को भी हेतु स्वीकार करना चाहिए । कहा भी है-'एक सामग्री के अधीन रूप आदि का रस से ज्ञान होता है। हेतु के धर्म के अनुमान से धूम और इन्धनविकार के समान ।' ४३-हम भी जिस किसी कारण को हेतु नहीं कहते, किन्तु जहाँ मंत्रादि के द्वारा कारण की शक्ति में प्रतिबन्ध ( रुकावट ) न किया गया हो और दूसरे सहकारी कारणों को विकलता (अपुर्णता)न हो, वहीं कारण को हेतु मानते हैं (क्योंकि ऐसा समर्थ हेतु कार्य को उत्पन्न किये विना रह नहीं सकता )शंका-मगर यह कैसे जाना जाय कि कारण का सामर्थ्य प्रतिबद्ध नहीं है और कारणान्तर की विकलता नहीं है ? समाधान-विगुण कारण से सगुण कारण में अन्तर होता हो है । उस अन्तर को गँवार हलवाहे भी समझ लेते हैं । कहा भी है

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