Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
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२८-साधनं साध्यं च वक्ष्यमाणलक्षणम् । दृष्टादुपदिष्टाद्वा 'साधनात्' यत् 'साध्यस्य' विज्ञानम्' सम्यगर्थनिर्णयात्मकं तदनुमीयतेऽनेनेति ‘अनुमानम्' लिङ्गग्रहणसम्बन्धस्मरणयोः पश्चात् परिच्छेदनम् ॥७॥
तत् द्विधा स्वार्थं परार्थं च ॥८॥ २९-'तत्' अनुमानं द्विप्रकारं स्वार्थ-परार्थभेदात् । स्वव्यामोहनिवर्तनक्षमम् 'स्वार्थम् । परव्यामोहनिवर्तनक्षमम् 'परार्थम् ॥८॥
३०-तत्र स्वार्थ लक्षयतिस्वार्थ स्वनिश्चितसाध्याविनाभावैकलक्षणात् साधनात्
साध्यज्ञानम् ॥९॥ ३१-साध्यं विनाऽभवनं साध्याविनाभावः, स्वेनात्मना निश्चितः साध्याविनाभाव एवैकं लक्षणं यस्य तत् 'स्वनिश्चितसाध्याविनाभावैकलक्षणम्' तस्मात्तथाविधात् 'साधनात्' लिङ्गात् 'साध्यस्य' लिङ्गिनो 'ज्ञानम्' 'स्वार्थम्' अनुमानम् । इह च न योग्यतया लिङ्ग परोक्षार्थप्रतिपत्तेरङ्गम, यथा बीजमंकुरस्य, अदृष्टाद धूमादग्ने- .
___ २८-साधन और साध्य का स्वरूप आगे कहा जाएगा। स्वयं देखे हुए या दूसरे के कहे हुए साधन से साध्य का जो सम्यगर्थनिर्णायक ज्ञान होता है वह अनुमान है । जिससे अनुमिति की जाय वह अनुमान है, अर्थात् साधन के ग्रहण और अविनाभाव के स्मरण के पश्चात् होने वाला विज्ञान ॥७.।
अनुमान के भेद-सूत्रार्थ-अनुमान दो प्रकार का है-स्वार्थ और परार्थ ॥८॥
२९-अनुमान के दो भेद है-स्वार्थानुमान और परार्थानुमान । जो निज के अज्ञान की निवृत्ति करने में समर्थ हो वह स्वार्थानुमान कहलाता है और जो परकीय अज्ञान का निवारण करे वह परार्थानुमान । अर्थात् धूम को देख कर स्वयं अग्नि को जान लेना स्वार्थानुमान और दूसरे को अग्नि का ज्ञान कराने के लिए स्वार्थानुमान को शब्दों द्वारा प्रकट करना परार्थानुमान है।।८॥
३०-स्वार्थानुमान का स्वरूप-सूत्रार्थ- अपने द्वारा निश्चित किये हुए अविनाभाव रूप एक लक्षणवाले साधन से साध्य का ज्ञान होना स्वार्थानुमान है ॥९॥
३१-साध्य के बिना न होना 'साध्याविनाभाव' कहलाता है । यह साध्याविनाभाव जब स्वयं के द्वारा निश्चित किया गया हो तो स्वनिश्चितसाध्याविनाभाव है । यही साधन का एक मात्र लक्षण है । ऐसे साधन से साध्य का ज्ञान होना स्वार्थानुमान कहलाता है । जैसे बीज अपनी योग्यता के कारण अंकुर का उत्पादक होता है (हम उसे देखें या न देखें), इस प्रकार साधन पोग्यता मात्र से साध्य का अनुमापक नहीं होता, ऐसा होता तो अदृष्ट धूम से भी अग्नि का