Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
३९- लक्षितं परीक्षितं च साधनम् । इदानीं तत् विभजति
स्वभावः कारणं कार्यमेकार्थसमवायि विशोध चेति पञ्चधा साधनम् ॥ १२॥
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४० - स्वभावादीनि चत्वारि विधेः साधनानि, विरोधि त निषेधस्येति पञ्चवितु धम् साधनम् । 'स्वभावः' यथा शब्दनित्यत्वे साध्ये कृतकत्वं श्रावणत्वं वा ।
४१- ननु श्रावणत्वस्यासाधारणत्वात् कथं व्याप्तिसिद्धिः ? । विपर्यये बाधकप्र. माणबलात् सत्त्वस्येवेति ब्रूमः । न चैवं सत्त्वमेव हेतुः तद्विशेषस्योत्पत्तिमत्त्व-कृत-कत्व-प्रयत्नानन्तरीयकत्व-प्रत्यय भेदभेदित्वादेरहेतुत्वापत्तेः । किंच, किमिदमसाधारणत्वं
३९- साधन का लक्षण और परीक्षण किया जा चुका। अब उसके भेदों की प्ररूपणा की जाती - सूत्रार्थ-स्वभाव, कारण, कार्य एकार्थसमवायी और विरोधी, यह पाँच प्रकार का साधन है ॥१२॥
४० - स्वभाव आदि चार साधन विधि के साधक हैं और विरोधी साधन निषेध का साधक । इस प्रकार साधन के पाँच प्रकार हैं । इन के स्वरूप निम्नलिखित हैं
(१) स्वभाव हेतु -- शब्द को अनित्यता सिद्ध करने में 'कृतकत्व' या१ श्रावणत्व' हेतु स्वभाव-साधन है ।
४१--शंका--'श्रावणत्व' हेतु असाधारण है-पक्ष के अतिरिक्त अन्यत्र ( सपक्ष में ) नहीं पाया जाता; अतएव उसकी साध्य के साथ व्याप्ति कैसे सिद्ध हो सकेगी ?
समाधान- अनित्यत्व से विपरीत नित्यत्व में बाधक प्रमाण विद्यमान है । उस बाधक प्रमाण के बल से ही व्याप्ति सिद्ध हो जाती है। तात्पर्य यह है कि- शब्द उच्चारण से पहले श्राव्य नहीं था, उच्चारण करते ही श्राव्य हो गया । नित्य में इस प्रकार अवस्थान्तर संभव नहीं है। इस बाधक प्रमाण के बल से 'श्रावणत्व' हेतु की 'अनित्यत्व' साध्य के साथ व्याप्ति सिद्ध होती है। स्वयं बौद्धों का माना हुआ 'सत्त्व' हेतु भी सपक्ष में नहीं रहता, फिर भी वे क्षणिकत्व के साथ उसकी व्याप्ति स्वीकार करते हैं। केवल सत्त्व' ही एक मात्र ऐसा हेतु है जो असाधारण होकर भी गमक हो सकता है; ऐसी बात नहीं है । अन्यथा सत्व के ३विशेष जो उत्पत्तिमत्त्व, कृतकत्व, प्रयत्नानन्तरीयकत्व और प्रत्यय भेद मेदित्व आदि हेतु हैं, वे सब अहेतु हो जाएँगे । इसके अतिरिक्त असाधारण हेतु किसे कहते हो? यदि सिर्फ पक्ष में ही रहना हेतु की असाधारणता है तो सब पदार्थों को क्षणिकता सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त आप का 'सत्त्व' हेतु
१ - शब्द अनित्य है, क्योंकि वह कृतक है, अथवा- क्योंकि वह श्रावण है । यहाँ कृतकत्व और श्रावणत्व स्वभाव नामक साधन हैं । २- सब पदार्थ क्षणिक हैं, क्योकि सत् हैं। यहां सत्त्व हेतु भी पक्ष के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं पाया जाता । ३ - सत्त्व का अर्थ अर्थक्रियाकारित्व है, अतएव श्रवणत्व भी एक प्रकार का सत्त्व ही है । इसी प्रकार हेतुओं के लिए यथायोग्य समझ लेना चाहिए ।