Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
"दोहिं वि नहिं नीयं सत्यमुक्लूएण तहवि मिच्छत्तं ।
जं सविसयप्प हाणत्तणेण अन्नोन्ननिरविक्ख" | | ( सन्म० ३.४९ ) ति ॥३०॥ १२० - कुतः पुनर्द्रव्यपर्यायात्मकमेव वस्तु प्रमाणानां विषयो न द्रव्यमात्रं पर्यामात्रमुभयं वा स्वतन्त्रम् इत्याह
अर्थक्रिया सामर्थ्यात् ॥३१॥
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१२१ - 'अर्थस्य' द्रव्यपर्यायात्मकस्यैव वस्तुनोऽर्थक्रियासमर्थत्वादित्यर्थः ॥ ३१ ॥ १२२ -- यदि नामैवं तत् किमित्याह-
हानोपादानादिलक्षणस्य 'क्रिया' निष्पत्तिस्तत्र 'सामर्थ्यात् ”
तल्लक्षणत्व वस्तुनः ॥ ३२॥
१२३ - ' तद्' अर्थक्रियासामथ्यं 'लक्षणम्' असाधारणं रूपं यस्य तत् तल्लक्षणं तस्य भावस्तत्त्वं तस्मात् । कस्य? | 'वस्तुनः, परमार्थसतो रूपस्य । अयमर्थ:-अर्थयार्थी हि सर्वः प्रमाणमन्वेषते, अपि नामेतः प्रमेयमर्थक्रियाक्षमं विनिश्चित्य कृतार्थो भवेयमिति न व्यसनितया । तद्यदि प्रमाणविषयोऽर्थोऽर्थक्रियाक्षमो न भवेत्तदा नासौ प्रमाणपरीक्षणमाद्रियेत । यदाह
'यद्यपि उलूक ( कणाद ) ने अपने शास्त्र में दोनों नयों (द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक ) को स्वीकार किया है तथापि वह मिथ्यात्व है क्योंकि वे दोनों नय अपने-अपने विषय में प्रधान होने से परस्पर निरपेक्ष हैं ।' तात्पर्य यह है कि औलूक्य दर्शन में आत्मा आकाश आदि जिन पदार्थों को नित्य माना है उन्हें एकान्त नित्य ही माना है और जिन्हें अनित्य माना है उन्हें एकान्त अनित्य ही माना । उन्होंने प्रत्येक वस्तुको नित्यानित्यात्मक नहीं माना। अतएव उनका मत भी मिथ्यात्व ही हैं ।
१२० - द्रव्य - पर्यायात्मक वस्तु ही क्यों प्रमाण का विषय है ? एकान्त द्रव्य, एकान्त पर्याय अथवा स्वतंत्र द्रव्य पर्याय प्रमाण का विषय क्यों नहीं हैं ? इस प्रश्न का उत्तर
अर्थ - अर्थक्रिया के सामर्थ्य से ( द्रव्य-पर्याय रूप वस्तु ही प्रमाण का विषय है ) ||३१|| १२१-त्याग करना या ग्रहण करना या उपेक्षा करना यहाँ 'अर्थ' का अभिप्राय है । उसकी 'क्रिया' अर्थात् निष्पत्ति में समर्थ होने से अर्थात् द्रव्य-पर्यायात्मक वस्तु हो अर्थक्रिया में समर्थ होने से द्रव्य - पर्यायक वस्तु प्रमाण का विषय है ॥ ३१ ॥
१२२- यदि द्रव्य - पर्यायात्मक वस्तु ही अर्थक्रिया में समर्थ होती है तो इससे क्या हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर- (अर्थ) - अर्थक्रिया ही वस्तु का लक्षण है । ३२ ||
१२३-परमार्थसत् वस्तु का लक्षण अर्थक्रिया में सामर्थ्य होता है। अर्थात् तो अर्थक्रिया में समर्थ हो वही वस्तु कहलाती है, हान- उपादान आदि अर्थक्रिया के अभिलाषी होकर ही सभी लोग प्रमाण की गवेषणा करते हैं जिससे कि अर्थक्रिया में समर्थ पदार्थ का निश्चय करके प्रवृत्ति करने पर सफलता प्राप्त हो सके । व्यसन मात्र से प्रमाण की गवेषणा नहीं करते हैं । ऐसी स्थिति में प्रमाणगोचर पदार्थ यदि अर्थक्रिया में समर्थ न हो तो प्रमाण को परीक्षा की आवश्यकता हो ! कहा भी है-
न