Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा धात् क्षणिकानामप्यक्रमेण कार्यकारित्वं मा भूदिति पर्यायकान्तादपि क्रमाक्रमयोापकयोनिवृत्त्यैव व्याप्याऽर्थक्रियापि व्यावर्तते । तव्यावृत्तौ च सत्त्वमपि व्यापकानुपलब्धिबलेनैव निवर्तत इत्यसन् पर्यायकान्तोऽपि ।
१२९-काणादास्तु द्रव्यपर्यायावुभावप्युपागमन् पृथिव्यादीनि गुणाद्याधाररूपाणि द्रव्याणि,गुणादयस्त्वाधेयत्वात्पर्यायाः। ते च केचित् क्षणिकाः केचिद्यावद्दव्यभाविनः केचिन्नित्या इति केवलमितरेतरविनि ठितमिधर्माभ्युपगमान्न समिचीनविषयवादिनः। तथाहि-यदि द्रव्यादत्यन्तविलक्षणं सत्त्वं तदा द्रव्यमसदेव भवेत् । सत्तायोगात् सत्त्वमस्त्येवेति चेत् ; असतां सत्तायोगेऽपि कुतः सत्त्वम् ?, सतां तु निष्फलः सत्तायोगः। स्वरूपसत्त्वं भावानामस्त्येवेति चेत् तहि किं शिखण्डिना सत्तायोगेन?। सत्तायोगात् प्राक् भावो न सन्नाप्यसन, सत्तासम्बन्धात्तु सन्निति चेत् वाङ्मात्रमेतत् सदसद्विलक्षणस्य प्रकारान्तरस्यासम्भवात् । अपि च पदार्थः,सत्ता,योगः' इति न त्रितयं चकास्ति । पदार्यसत्तयोश्च योगो यदि तादात्म्यम्, तदनभ्युपगमबाधितम् । अत एव न संयोगः,
इस प्रकार एकान्त पर्यायवाद में भी व्यापक-क्रम और अक्रम के न बनने से उनकी व्यप्य अर्थक्रिया नहीं बन सकती। और जब अर्थक्रिया नहीं बन सकती तो उसका भी व्याप्य सरव नहीं बन सकता, क्योंकि जहाँ व्यापक नहीं होता वहाँ व्याप्य भी नहीं होता । अतएव एकान्त पर्यायवाद भी असत् है। . १२९-वैशेषिकों ने द्रव्य और पर्याय दोनों को स्वीकार किया है। उनके मतानुसार पृथिवी आदि, जो गुणों के आधार हैं, वे द्रव्य हैं, और गुण आदि पदार्थ आधेय होने से पर्याय हैं। इनमें से कोई कोई क्षणिक हैं, कोई यावद्रव्यभावी अर्थात् जब तक द्रव्य रहता है तब तक रहने वाले हैं और कोई-कोई नित्य हैं। मगर वैशेषिक धर्मो ( द्रव्य ) और धर्म (पर्याय-गुण) को सर्वथा भिन्न स्वीकार करते हैं, अतएव उनका कथन सम्यक नहीं है। यथा-यदि सत्ता (सामान्य) द्रव्य से सर्वथा विलक्षण-भिन्न है तो द्रव्य असत होना चाहिए।
शंका-सत्ता का समवाय होने से द्रव्य सत् है । समाधान-द्रव्यादि स्वरूप से असत् हैं या सत् हैं ? असत् हैं तो सत्ता के समवाय से भी वे सत् नहीं हो सकते । और यदि सत् हैं तो उनमें सत्ता का समवाय मानना निष्फल है।
शंका-पदार्थों में स्वरूपसत्ता तो होती ही है। समाधान-तो फिर इस शिखंडी सत्तासमवाय से क्या लाम है ?
शंका--सत्ता के समवाय से पहले पदार्थ न सत् होता है, न असत् होता है, सत्ता के सम्बन्ध से सत् होता है । समाधान-यह वचनमात्र है । सत् और असत् से विलक्षण कोई तीसरा प्रकार हो ही नहीं सकता-जो सत् नहीं है वह असत् और जो असत् नहीं है वह सत् होता ही है । इसके अतिरिक्त पदार्थ, सत्ता और समवाय, इन तीन की प्रतीति नहीं होती है। पदार्थ और सत्ता के संबंध को यदि तादात्म्य संबंध कहा जाय तो वह वैशेषिक ने माना ही नहीं है। संयोग संबंध