Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
यव्यवस्थापकभावात्तु भेद इति भेदाभेदरूपः स्याद्वादमबाधितमनुपतति प्रमाणफलभाव इतीदमखिलप्रमाणसाधारणमव्यवहितं फलमुक्तम् ॥३७॥
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१४२ - अव्यवहितमेव फलान्तरमाह - अज्ञाननिवृत्तिर्वा ॥ ३८ ॥
१४३-प्रमाणप्रवृत्तेः पूर्वं प्रमातुविवक्षिते विषये यत् 'अज्ञानम्' तस्य निवृत्तिः' फलमित्यन्ये । यदाहु:
" प्रमाणस्य फलं साक्षादज्ञानविनिवर्तनम् ।
केवलस्य सुखोपेक्षे शेषस्यादानहानधीः || ” [ न्याया• २८ ] इति ॥ ३८ ॥ १४४ - व्यवहितमाह
अवग्रहादीनां वा क्रमोपजनधर्माणां पूर्वं पूर्वं प्रमाणमुत्तरमुत्तरं फलम् || ३९॥
१४५- अवग्रहेहावायधारणास्मृतिप्रत्यभिज्ञानोहानुमानानां क्रमेणोपजायमानानां यद्यत् पूर्वं तत्तत्प्रमाणं यद्यदुत्तरं तत्तत्फलरूपं प्रतिपत्तव्यम् । अवग्रहपरिणामवान् ह्यात्मा ईहारूपफलतया परिणमति इतीहाफलापेक्षया अवग्रहः प्रमाणम् । ततोऽपीहा प्रमाणमवायः फलम् । पुनरवायः प्रमाणं धारणा फलम् । ईहाधारणयोर्ज्ञानोपादानत्वात् ज्ञानरूपतोन्नेया । ततो धारणा प्रमाणं स्मृतिः फलम् । ततोऽपि स्मृतिः प्रमाणं प्रत्यऔर फल व्यवस्थाप्य है, इस अपेक्षा से दोनों में भेद भी है। अतएव प्रमाण और फल में भेदाभेद रूप स्याद्वाद लागू होता है । यह सभी प्रमाणों का सामान्य साक्षात् फल कहा गया है || ३७॥ १४२--दूसरा साक्षात् फल -- ( सूत्रार्थ ) अथवा -- अज्ञान की निवृत्ति फल है ॥ ३८ ॥
१४३ - प्रमाण की प्रवृत्ति होने से पहले प्रमाता को किसी विषय में जो अज्ञान होता है, उसका दूर हो जाना प्रमाण का फल है। कहा भी है
'प्रमाण का साक्षात् फल अज्ञान का निवारण हो जाना है। परस्पर फल केवलज्ञान का सुख और उपेक्षाभाव होना है और शेष प्रमाणों का ग्रहणबुद्धि तथा त्याग बुद्धि होना है' ॥३८
व्यवहित का निरूपण- (सूत्रार्थ ) क्रम से उत्पन्न के स्वभाव वाले अवग्रह आदि में से पूर्व - पूर्व के प्रमाण और उत्तर-उत्तर वाले फल हैं ।। ३९॥
१४५ - अवग्रह ईहा, अवाय धारणा स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, ऊह (तर्क) और अनुमान यह ज्ञान क्रम से उत्पन्न होते हैं, अर्थात् पहले अवग्रह, फिर ईहा, फिर अवाय आदि होते हैं। इनमें पहले-पहले वाला ज्ञान प्रमाण और आगे-आगे वाला उसका फल है । जो आत्मा पहले अवग्रहपर्याय से युक्त होता है, वही ईहारूप फल से युक्त होता है । अतएव अवग्रह प्रमाण और ईहा उसका फल है, तत्पश्चात् ईहा प्रमाण और अवाय उसका फल है, पुनः अवाय प्रमाण और धारणा उसका फल है, फिर धारणा प्रमाण और स्मृति उसका फल है, इसी प्रकार स्मृति प्रमाण और प्रत्यभिज्ञान