Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 76
________________ प्रमाणमीमांसा "नासतो हेतुता नापि सतो हेतोः फलात्मता। इति जन्मनि दोषः स्याद् व्यवस्था तु न दोषभाग् ॥” इति ॥३४॥ १३६-व्यवस्थामेव दर्शयति कर्मस्था क्रिया ॥३५॥ . १३७-कर्मोन्मुखो ज्ञानव्यापारः फलम् ॥३५॥ १३८-प्रमाणं किमित्याह कर्तृस्था प्रमाणम् ॥३६॥ १३९-कर्तृव्यापारमुल्लिखन् बोधः प्रमाणम् ॥३६॥ १४०-कथमस्य प्रमाणत्वम् ?। करणं हि तत् साधकतमं च करणमुच्यते । अव्यवहितफलं च तदित्याह तरयां सत्यामर्थप्रकाशसिद्धेः ॥३७॥ १४१-'तस्याम, इति कर्तस्थायां प्रमाणरूपायां क्रियायां 'सत्याम' 'अर्थप्रकाशस्य' फलस्य 'सिद्धेः' व्यवस्थापनात् । एकज्ञानगतत्वेन प्रमाणफलयोरभेदो, व्यवस्था 'जो असत् अर्थात् अविद्यमान होता है, वह करण नहीं हो सकता और सत् होता है वह कार्य नहीं हो सकता । तात्पर्य यह है कि यदि प्रमाण और फल अभिन्न हैं तो यह प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रमाण सत माना जाय या असत ? यदि सत है तो उससे अभिन्न होने के कारण फल को भी सत् मानना पडेगा । जब फल भी सत् है तो प्रमाण से उसकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? और यदि प्रमाण स्वयं असत् है तो फल में उसे करण नहीं कहा जा सकता। अतः यह दोष उत्पत्ति में होता है, व्यवस्था में यह दोष लागू नहीं होता' ॥३४॥ १३६-व्यवस्था का उपदर्शन-(सूत्रार्थ)-कर्म में स्थित क्रिया कहलाती है ॥३५॥ १३७--कर्म की ओर उन्मुख ज्ञान-व्यापार फल कहलाता है १३८-प्रमाण क्या है ? (सूत्रार्थ)--कर्ता में स्थित क्रिया प्रमाण है। १३९-कर्ता के व्यापार का उल्लेख करता हुआ बोध प्रमाण कहलाता है। १४०-यह प्रमाण क्यों है ? इसका उत्तर यह है कि वह करण है और करण साधकतम होता है। बिना कालव्यवधान के तत्काल उससे कार्य को उत्पत्ति होती है । यही बात आगे कहते हैं (सूत्रार्थ)--कर्तृस्थ क्रिया के होने पर अर्थप्रकाश की सिद्धि होती है॥३७॥ १४१--प्रमाणरूप कर्तृस्थ क्रिया के होने पर अर्थप्रकाश की सिद्धि होती है । इस प्रकार प्रमाण और फल एक ही ज्ञानगत होने से अभिन्न हैं, किन्तु व्यवस्थाप्य-व्यवस्थापक के भेद से भिन्न भी हैं। तात्पर्य यह है कि क्रिया कर्म और कर्ता दोनों में रहती है । यहाँ ज्ञप्ति क्रिया कर्म में रहने से फल हैं और कर्ता में रहने से प्रमाण है। किन्तु वस्तुतः क्रिया एक है और वही प्रमाण तथा फल है। उस अपेक्षा से प्रमाण और फल में अमेव होने पर भी प्रमाण व्यवस्थापक

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