Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board

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Page 68
________________ प्रमाणपीमांसा __ १२५-नाप्यक्रमेण । न ह्यको भावः सकलकालकलाभाविनीयुगपत् सर्वाः क्रिया: करोतीति प्रातीतिकम् । कुरुतां वा, तथापि द्वितीयक्षणे किं कुर्यात्?। करणे वा क्रमपक्षभावी दोषः । अकरणेऽनर्थक्रियाकारित्वादवस्तुत्वप्रसङ्गः- इत्येकान्तनित्यात् क्रमाक्रमाभ्यां व्याप्तार्थक्रिया व्यापकानुपलब्धिबलात् व्यापकनिवृत्तौ निवर्तमाना व्याप्यमर्थक्रियाकारित्वं निवर्तयति, तदपि स्वव्याप्यां सत्त्वमित्यसन् द्रव्यकान्तः । १२६-पर्यायकान्तरूपोऽपि प्रतिक्षणविनाशी भावो न क्रमेणार्थक्रियासमर्थो देशकृतस्य कालकृतस्य च क्रमस्यैवाभावात् । अवस्थितस्यैव हि नानादेशकालव्याप्तिर्देशक्रमः कालक्रमश्चाभिधीयते । न चैकान्तविनाशिनि सास्ति । यदाहुः ___ "यो यत्रैव स तत्रैव यो यदैव तदैव सः। न देशकालयोर्व्याप्तिर्भावानामिह विद्यते ॥" १२७-न च सन्तानापेक्षया पूर्वोत्तरक्षणानां क्रमः सम्भवति, सन्तानस्याऽवस्तुत्वात् । वस्तुत्वेऽपि तरय यदि क्षणिकत्वं न तहि क्षणेभ्यः कश्चिद्विशेषः । अथाक्षणिकत्वम् ; सुस्थितः पर्यायैकान्तवादः ! यदाहुः १२५-नित्य पदार्थ एक साथ भी अर्थक्रिया नहीं कर सकता। सम्पूर्ण काल के अंशों विभागों में होनेवाली समस्त क्रियाओं को एक ही पदार्थ एक ही साथ कर लेता है, यह बात प्रतीति के योग्य नहीं है । थोडी देर के लिए मान लें कि वह ऐसा करता है तो फिर दूसरे क्षण में वह क्या करेगा? कुछ करेगा तो उसका करना क्रम से करना कहलाएगा, (जिसका निराकरण पहले किया जा चुका है।) अगर कुछ भी नहीं करेगा तो अर्थक्रियाकारी नहीं रहने से अवस्तु हो जाएगा। इस प्रकार नित्य पदार्थ में न क्रम बनता है,न अक्रम बनता है । क्रम-अक्रम व्यापक हैं और अर्थक्रिया व्याप्य है । व्यापक के अभाव में व्याप्य भी नहीं रहता अर्थात् क्रम-अक्रम के अभाव में अर्थक्रिया भी घटित नहीं होती और अर्थक्रिया के घटित न होने से सत्त्व भी उसमें नहीं बन सकता, क्योंकि सत्त्व का व्यापक अर्थक्रियाकारित्व है, अतः जहाँ अर्थक्रियाकारित्व का अभाव है, वहाँ सत्त्व का भी अभाव होगा। १२६-क्षण-क्षण में नष्ट होने वाला एकान्त पर्यायरूप पदार्थ भी क्रमसे अर्थक्रिया नहीं कर सकता। उसमें देशकृत या कालकृत क्रम ही नहीं हो सकता तो क्रमसे अर्थक्रिया कैसे कर सकता है? स्थिर रहनेवाले पदार्थ का एक देशसे दूसरे देश में होना देशक्रम और एक काल से दूसरे काल में होना कालक्रम कहलाता है। एकान्ततः क्षणविनश्वर पदार्थ में इन दोनों में से कोई भी क्रम संभव नहीं है । कहा भी है___जो पदार्थ जहाँ उत्पन्न होता है वह वहीं रह जाता है और जिस काल में उत्पन्न होता है, उसी काल में रहता है न अन्यत्र जा सकता है, न अन्यत्र रह सकता है। अतएव एकान्त पर्यायवाद में देश और काल की व्याप्ति संभव नहीं है। १२७-शंका-सन्तान अर्थात् प्रवाह की अपेक्षा से वस्तु में क्रम बन सकता है । समाधान नहीं । सन्ताम कुछ वस्तु ही नहीं है । उसे वस्तु मानो तो वह क्षणिक है या नित्य? क्षणिक मानने

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