Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा ''अर्थक्रियाऽसमर्थस्य विचारैः किं तदथिनाम् । षण्ढस्य रूपवरूप्ये कामिन्याः किं परीक्षया? ॥" (प्रमाणवा० १.२१५ ) इति ।
१२४-तत्र न द्रव्यैकरूपोऽर्थोऽर्थक्रियाकारी, स ह्यप्रच्युतानुत्पन्नस्थिरैकरूपः कथमर्थक्रियां कुर्वीत क्रमेणाक्रमेण वा ?, अन्योन्यव्यवच्छेदरूपाणां प्रकारान्तरासम्भवात् । तत्र न क्रमेण ; स हि कालान्तरभाविनीः क्रियाः प्रथमक्रियाकाल एव प्रसह्य कुर्यात् समर्थस्य कालक्षेपायोगात्, कालक्षेपिणो वाऽसामर्थ्यप्राप्तेः । समर्थोऽपि तत्तत्सहकारिसमवधाने तं तमर्थ करोतीति चेत् न तर्हि तस्य सामर्थ्यमपरसहकारिसापेक्षवृत्तित्वात, "सापेक्षमसमर्थम्” (पात०महा० ३.१.८) इति हि किं नाश्रौषीः?। न तेन सहकारिणोऽपेक्ष्यन्तेऽपि तु कार्यमेव सहकारिष्वसत्स्वभवत् तानपेक्षत इति चेत् तत्कि स भावोऽसमर्थः ?। समर्थश्चेत्; किं सहकारिमुखप्रेक्षणदीनानि तान्युपेक्षते न पुनर्झटिति घट यति?। ननु समर्थमपि बीजमिलाजलादिसहकारिसहितमेवारं करोति नान्यथा;
_ 'जो अर्थक्रिया के अभिलाषी हैं, उन्हें अर्थक्रिया में असमर्थ पदार्थ का विचार करने से क्या लाभ ? कामिनी के लिए नपुंसक की सुन्दरता--असुन्दरता का विचार करना वृथा ही है ?
(अर्थक्रिया में समर्थ पदार्थ का निश्चय करने के लिए ही प्रमाण को गवेषणा की जाती है. ऐसा पदार्थ द्रव्यपर्याय स्वरूप ही है. यह ऊपर कहा जा चुका है। यहाँ उसके अतिरेक पर विचार किया जाता है।)
१२४-एकान्त द्रव्यरूप अर्थात् सर्वथा नित्य पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं है। एकान्तद्रव्यरूप पदार्थ वह कहलाता है जो कभी अपने स्वरूप से च्युत न हो, उत्पन्न न हो और सदा स्थिर एक रूप रहे । ऐसा पदार्थ किस प्रकार से अर्थक्रिया करेगा, क्रम से या एक साथ ? परस्पर विरोधी दो विकल्पों के अतिरिक्त तीसरा कोई विकल्प संभव नहीं है। वह क्रम से अर्थक्रिया नहीं करेगा, क्योंकि कालान्तर में होने वाली क्रियाओं को प्रथम क्रिया के समय में ही कर सकता है। वह ऐसा करने के लिए समर्थ है और जो समर्थ होता है वह कालक्षेप नहीं करता। यदि नित्य पदार्थ कालक्षेप करेगा तो उसमें असमर्थता होनी चाहिए।
शंका-नित्य पदार्थ तो एक साथ सब क्रियाओं को करने में समर्थ है, किन्तु जब जिस क्रिया के योग्य सहकारी कारण मिलते हैं, तब उस क्रिया को करता है। समाधान-सहकारी कारणों की सहायता लेकर यदि वह कार्य करता है तो वह समर्थ नहीं कहला सकता। क्या आपने यह नहीं सुना है कि दूसरे की अपेक्षा रखने वाला स्वयं असमर्थ होता है।
शंका-नित्य पदार्थ को सहकारी कारणों की अपेक्षा नहीं होती, किन्तु सहकारियों के अभाव में न होता हुआ कार्य हो उनकी अपेक्षा रखता है। समाधान--तो क्या नित्य पदार्थ उन कार्यों को करने में असमर्थ है ? यदि वह स्वयं उन्हें करने में समर्थ है तो सहकारी कारणों का मुंह ताकने वाले उन बेचारे कार्यों की उपेक्षा क्यों करता है ? झटपट कर क्यों नहीं देता?
___ शंका--बीज अंकुर की रत्पत्ति में समर्थ होने पर भी पृथ्वी, जल आदि सहायक कारणों के मिलने पर ही उसे उत्पन्न करता है, अकेला नहीं। इसी प्रकार नित्य पदार्थ समर्थ होकर भी