Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
५६--अपि च-"नोदना हि भूतं भवन्तं भविष्यन्तं सूक्ष्म व्यवहितं विप्रकृष्टमेवजातीयकमर्थमवगमयति नान्यत्किञ्चनेन्द्रियम्" [शाबर भा० १.१.२ ] इति वदता भूताद्यर्थपरिज्ञानं कस्यचित् पुंसोऽभिमतमेव, अन्यथा कस्मै वेदस्त्रिकालविषयमर्थ निवेदयेत् ? । स हि निवेदयंस्त्रिकालविषयतत्त्वज्ञमेवाधिकारिणमुपादत्ते, तदाह
"त्रिकालविषयं तत्त्वं कस्मै वेदो निवेदयेत् ।
अक्षय्यावरणैकान्तान्न चेद्वेद तथा नरः ॥" [ सिद्धिवि• पृ. ४१४A ] इति त्रिकालविषयवस्तुनिवेदनाऽन्यथानुपपत्तेरतीन्द्रियकेवलज्ञानसिद्धिः।
५७-किञ्च,प्रत्यक्षानुमानसिद्धसंवादं शास्त्रमेवातीन्द्रियार्थदर्शिसद्भावे प्रमाणम्, य एव हि शास्त्रस्य विषयः स्याद्वादः स एव प्रत्यक्षादेरपीति संवादः, तथाहि
__ "सर्वमस्ति स्वरूपेण पररूपेण नास्ति च ।
अन्यथा सर्वसत्त्वं स्यात् स्वरूपस्याप्यसम्भवः ॥" इति दिशा प्रमाणसिद्धं स्याद्वादं प्रतिपादयन्नागमोऽहतस्सर्वज्ञतामपि प्रतिपादयति, यदस्तुम
५६-एसा माना जाता है कि- वेद भत वर्तमान, भविष्यत, सूक्ष्म, व्यवहित और विप्रकृष्ट तथा इसी प्रकार के अन्य सब पदार्थो का ज्ञान कराता है। किसी भी इन्द्रिय से ऐसा ज्ञान नहीं उत्पन्न हो सकता है। ऐसा मानने वाले ने भूत भविष्यत् आदि का ज्ञान किसी पुरुष को अवश्य स्वीकार किया है। यदि किसी पुरुषको त्रैकालिक ज्ञान संभव न होता तो वेद से किसे यह ज्ञान होता? वेद से जब ऐसा ज्ञान होता है तो किसी त्रिकालज्ञ अधिकारी पुरुष को ही होना चाहिए । कहा भी है
___ 'यदि आवरणों का क्षय हो ही नहीं सकता और पुरुष को वैसा ज्ञान नहीं हो सकता तो वेद त्रिकालविषयक तत्त्व किसको निवेदन करता है ?
यदि त्रैकालिक ज्ञान संभव न होता तो वेद त्रिकालसंबंधी तत्त्व का निवेदन ही नहीं कर सकता था। परन्तु वेद निवेदन करता है, इससे केवलज्ञान की सिद्धि होती है ।
___५७-इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष और अनुमान से जिसकी पुष्टि होती है ऐसा शास्त्र ही अतीन्द्रियार्थदर्शी के सद्भाव में प्रमाण है । जो स्याद्वाद शास्त्र का विषय है, वही प्रत्यक्ष आदि का भी विषय है । यही संवाद है । कहा भी है
'प्रत्येक वस्तु स्वरूप से सत् है और पररूप से असत् है । यदि पररूप से असत्ता नमानी जाय तो प्रत्येक वस्तु सर्वमय हो जाए और स्वरूप से सत्ता न मानी जाय तो वस्तु का कोई स्वरूप ही न रह जाय।' ____ इस प्रकार प्रमाण सिद्ध स्याद्वाद का प्रतिपादन करता हुआ आगम अर्हन्त की सर्वज्ञता का भी प्रतिपादन करता है । शास्त्र की स्तुति करते हुए हमने कहा है