Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा — ९४--नन्वर्थाजन्यत्वे ज्ञानस्य कथं प्रतिकर्मव्यवस्था?, तदुत्पत्तितदाकारताभ्यां हि सोपपद्यते, तस्मादनुत्पन्नस्यातदाकारस्य च ज्ञानस्य सर्वार्थान् प्रत्यविशेषात् ; नैवमतदुत्पत्तिमन्तरेणाप्यावरणक्षयोपशमलक्षणया योग्यतयैव प्रतिनियतार्थप्रकाशकत्वोपपत्तेः। तदुत्पत्तावपि च योग्यतावश्याश्रयणीया, अन्यथाऽशेषार्थसान्निध्येऽपि कुतश्चिदेवार्थात् कस्यचिदेव ज्ञानस्य जन्मेति कौतस्कुतोऽयं विभागः। तदाकारता त्वर्थाकारसंक्रान्त्या तावदनुपपन्ना, अर्थस्य निराकारत्वप्रसंगात् । अर्थेन च मूर्तेनामर्तस्य ज्ञानस्य कीदृशं सादृश्यमित्यर्थविशेषग्रहणपरिणाम एव साभ्युपेया। अतः--
"अर्थेन घटयत्येनां नहि मुक्त्वाऽर्थरूपताम्"[ प्रमाण वा०३.३०५ ] इति यत्किचिदेतत्।
९५-अपि च व्यस्ते समस्ते वैते ग्रहणकारणं स्याताम् । यदि व्यस्ते; तदा कपाला
९४-प्रश्न-यदि ज्ञान को पदार्थजन्य न माना जाय तो प्रतिनियत विषयव्यवस्था कैसेहोगी ? तदुत्पत्ति और तदाकारता से वह व्यवस्था ठीक बैठती है । अर्थात् यदि इस सिद्धांत को स्वीकार कर लिया जाय कि ज्ञान जिस पदार्थ से उत्पन्न होता है और जिस पदार्थ के आकार का होता है, उसी को जानता है- अन्य पदार्थ को नहीं जानता, तो घटज्ञान घट को ही जानता है, अन्य पदार्थ को नहीं ? ऐसी व्यवस्था संगत हो जाती है। किन्तु ज्ञान यदि किसी भी पदार्थ से उत्पन्न नहीं होता और किसी के भी आकार का नहीं होता तो वह सभी पदार्थों के लिये समान है। अतएव जाने तो सभी को जाने और न जाने तो किसी को न जाने । किसी निपत पदार्थ को जाने और दूसरों को न जाने, यह कैसे हो सकता है ?
समाधान-तदुत्पत्ति के विना भी आवरणक्षयोपशम रूप योग्यता के द्वारा ही ज्ञान नियतनियत पदार्थों का प्रकाशक होता है। तदुत्पत्ति मानने पर भी योग्यता तो स्वीकार करनी ही पडेगी, अन्यथा समस्त पदार्थों का सान्निध्य होने पर भी अमुक हो पदार्थ से अमुक ही ज्ञान की जो उत्पत्ति होती है, यह विभाग किस आधार पर होगा ? अर्थात् घटपदार्थ से घट-ज्ञान ही उत्पन्न हो, ऐसा नियम किस प्रकार सिद्ध होगा? इसके लिए तो योग्यता का ही आश्रय लेना पडेगा । रह गई तदाकारता, सो उसका अर्थ यदि यह है कि पदार्थ का आकार ज्ञान में चला जाता है तो यह कल्पना युक्तिसंगत नहीं है । ऐसा मानने से पदार्थ निराकार हो जाएगा। फिर मर्त पदार्थ के साथ अनूर्त ज्ञानका क्या सादृश्य है ? अतः ज्ञान जब किसी पदार्थ को ग्रहण करता है तो उसमें उसे ग्रहण करने का एक विशिष्ट परिणमन होता है, वही ज्ञान की अर्थाकारता है. ऐसा स्वीकार करना चाहिए। अतएव सविकल्पक ज्ञान अर्थाकारता के विना प्रमाण ही नहीं हो सकता' ऐसा बौद्धों का कथन निस्सार है। ९५-तथा-तत्पत्ति और तदाकारता अलग-अलग ग्रहण के कारण हैं अथवा मिल कर ? यदि अलग-अलग कारण हैं तो कपाल (ठोकरे)का आद्य क्षण खप्पर के अन्तिम क्षण का ग्राहक होना चाहिए (क्योंकि आपके मतानुसार घट के अन्तिम क्षण से कपाल का प्रथम क्षण उत्पन्न हआ है,