Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
स्पर्शाद्युपलब्धिः करणपूर्वा क्रियात्वात् छिदिक्रियावत् । तत्रेन्द्रेण कर्मणा सृष्टानीन्द्रियाणि नामकर्मोदयनिमित्तत्वात् । इन्द्रस्यात्मनो लिगानि वा, कर्ममलीमसस्य हि स्वयमर्थानुपलब्धुमसमर्थस्यात्मनोऽर्थोपलब्धौ निमित्तानि इन्द्रियाणि ।
७६--नन्वेवमात्मनोऽर्थज्ञानमिन्द्रियात् लिंगादुपजायमानमानुमानिकं स्यात् । तथा च लिंगापरिज्ञानेऽनुमानानुदयात् । तस्यानुमानात्परिज्ञानेऽनवस्थाप्रसंगः; नैवम् ; भावेन्द्रियस्य स्वसंविदितत्वेनानवस्थानवकाशात् । यद्वा इन्द्रस्यात्मनो लिंगान्यात्म-गमकानि इन्द्रियाणि करणस्य वास्यादिवत्कर्त्रधिष्ठितत्वदर्शनात् ।
७७ -- तानि च द्रव्यभावरूपेण भिद्यन्ते । तत्र द्रव्येन्द्रियाणि नामकर्मोदयनिमितानि, भावेन्द्रियाणि पुनस्तदावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमनिमित्तानि । सैषा पञ्चसूत्री स्पर्शग्रहणलक्षणं स्पर्शनेन्द्रियं रसग्रहणलक्षणं रसनेन्द्रियमित्यादि । सकलसंसारिषु भावाच्छरीरव्यापकत्वाच्च स्पर्शनत्य पूर्वं निर्देशः, ततः क्रमेणात्पाल्पजीवविषयत्वाद्रसनघ्राणचक्षुः श्रोत्राणाम् ।
स्पर्श आदि की उपलब्धि करण के द्वारा ही होती है, क्योंकि वह क्रिया है, प्रत्येक क्रिया करण के द्वारा ही हुआ करती है, जैसे छेदन-क्रिया कुठार के द्वारा होती है। इस प्रकार स्पर्श आदि की उपलब्धि में जो करण है. वही इन्द्रिय है । इन्द्र अर्थात् नाम कर्म के द्वारा जिनका निर्माण हुआ हो वह इन्द्रियाँ । अथवाइन्द्र अर्थात् आत्मा के लिए जो लिंग-करण हों वह इन्द्रियाँ । कर्मों से मलीन आत्मा स्वयं पदार्थों को जानने में असमर्थ है । इन्द्रियाँ उसके जानने में निमित्त होती हैं ।
७६- शंका- यदि आत्मा को इन्द्रिय रूप लिंग से पदार्थों का ज्ञान होता है तो वह ज्ञान अनुमान कहलाएगा | और अनुमान की उत्पत्ति लिंग का ज्ञान हुए विना हो नहीं सकती। लिंग का ज्ञान भी यदि अनुमान से माना जाय तो अनवस्था दोष का प्रसंग आता है । अर्थात् लिंग ज्ञानजनक वह अनुमान भी लिंग को जान लेने पर ही होगा और वह लिंग फिर अनुमानान्तर से जाना जाएगा। इस प्रकार कहीं विश्रांति ही नहीं होगी। समाधान-ऐसी बात नहीं है भावेन्द्रियाँ स्वसंवेदी हैं अर्थात् आप ही अपने को जान लेती हैं, अतएव अनवस्था को कोई अवकाश नहीं है । अथवा इन्द्र अर्थात् आत्मा के जो लिंग हों - जिनसे आत्मा के अस्तित्व की प्रतीति होती हो उन्हें इन्द्रिय कहते हैं । जितने भी वसूला आदि करण हैं वे सब कर्त्ता द्वारा अधिष्ठित होकर ही क्रिया करते हैं । इन्द्रियाँ करण हैं तो वे भी कर्ता से अधिष्ठित होनी चाहिए। वह कर्ता ही आत्मा है । इस प्रकार इन्द्रियों से आत्मा का अनुमान होता है ।
७७ - इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं- द्रव्येन्द्रियाँ और भावेन्द्रियाँ, द्रव्येन्द्रियाँ नामकर्म के उदय से बनती हैं। भावेन्द्रियाँ इन्द्रियावरण और वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशय से होती हैं । स्पर्श को विषय करने वाली स्पर्शनेन्द्रिय है, एवं पाँचों इन्द्रियों के विषय में यथायोग्यस मझ लेना चाहिए । समस्त जीवों में जीवों को प्राप्त
सर्वप्रथम स्पर्शनेन्द्रिय का उल्लेख किया गया है, क्योंकि वह संसार के पाई जाती है और सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है । तत्पश्चात् क्रम से अल्प- अल्प