Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Hemchandracharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Tilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
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प्रमाणमीमांसा
व्यतिरेकद्वारेण वस्तु परिच्छिन्दत् तदधिकं विषयमभावैकरूपं निराचष्ट इति के विषयमाश्रित्याभावलक्षणं प्रमाणं स्यात् ? । एवं परोक्षाण्यपि प्रमाणानि भावाभावरूपवस्तुग्रहणप्रवणान्येव, अन्यथाऽसङ्कीर्णस्वस्वविषयग्रहणासिद्धः, यदाह
"अयमेवेति यो ह्येष भावे भवति निर्णयः।
नैष वस्त्वन्तराभावसंवित्त्यनुगमाइते ॥" इति
[श्लोकवा० अभाव० श्लो. १५.] ४०-अथ भवतु भावाभावरूपता वस्तुनः, किं नश्च्छिन्नम् ?, वयमपि हि तथैव प्रत्यपीपदाम। केवलं भावांश इन्द्रियतनिकृष्टत्वात् प्रत्यक्षप्रमाणगोचरः अभावांशस्तु न तथेत्यभावप्रमाणगोचर इति कथमविषयत्वं स्यात् ?, तदुक्तम्--
"न तावदिन्द्रियणैषा नास्तीत्युत्पाद्यते मतिः । भावांशेनैव संयोगो योग्यत्वादिन्द्रियस्य हि ॥१॥ गृहीत्वा वस्तुसद्भावं स्मृत्वा च प्रतियोगिनम् ।
मानसं नास्तिताज्ञानं जायतेऽक्षानपेक्षया ॥२॥" इति ।
[ श्लोकवा.३ अभाव० श्लो. १८, २७ ] निषेध के रूप में प्रत्यक्ष वस्तु को ग्रहण करता है । इससे एकान्त अभाव है ही नहीं तो अभाव प्रमाण का विषय क्या होगा ? कुछ भी नहीं। प्रत्यक्ष को तरह परोक्ष प्रमाण भी भावाभावात्मक वस्तु को ही ग्रहण करते हैं । अगर वे भावाभावात्मक वस्तु प्रहण न करें तो पृथक पृथक बस्तु का ग्रहण ही नहीं हो । श्लोकवतिक में कहा है- किसी भी भाव में 'यही है' अर्थात् यह अश्व ही है,ऐसा निश्चय अन्य वस्तुओं के अभाव को जाने बिना नहीं होसकता । तात्पर्य यह है कि 'यह अश्व ही है' ऐसा निश्चय तभी हो सकता है जब यह जान लिया जाय कि यह अश्व के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है ।
अभिप्राय यह है कि कोई भी प्रमाण किसी भी वस्तु को जब जानता है तो उसके भाव और अभाव दोनों रूपों को ही जानता है। दोनों रूपों को जाने बिना वस्तु का असाधारणस्वरूप समझ में नहीं आ सकता।
४०-शंका-वस्तु को भाव-अभाव रूप मान लेने से भी हमारे मत में कोई बाधा नहीं आती। बल्कि हम भी यही कहते हैं। किन्तु हमारा कहना यह है कि वस्तु का भाव-अंश इन्द्रिय से सनिकृष्ट होने के कारण प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा जाना जाता है, किन्तु अभाव-अंश का इन्द्रिय के साथ सन्निकर्ष नहीं होने से वह अभाव प्रमाण द्वारा ग्रहण किया जाता है । ऐसी अवस्था में अभाव प्रमाण निविषय नहीं हो सकता । कहा भी है-'नास्तित्व का ज्ञान इन्द्रियाँ उत्पन्न नहीं कर सकती, क्योंकि इन्द्रियों का संयोग भाव-अश के साथ हो हो सकता है।' ___ 'पहले वस्तु के सद्भाव को ग्रहण किया जाता है, फिर १प्रतियोगी का स्मरण किया जाता है। तत्पश्चात् इन्द्रियों की सहायता के विना मन के द्वारा नास्तित्व का ज्ञान होता है।'
: १-जिसका अभाव जाना जाता है वह प्रतियोगी कहलाता है । घट का अभाव जानते समय घट प्रतियोगी है।