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XIV : स्वकथ्य
का उत्साहवर्द्धन किया। हेमलताजी को इस कार्य में डॉ. शक्ति कुमार शर्मा (शकुन्त), वरिष्ट शोधाधिकारी, साहित्य संस्थान, ज.रा. नागर राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर, से भी सहयोग व संबल प्राप्त हुआ एतदर्थ हम उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ।
डॉ. (कर्नल) बया 'श्रेयस' ने हिन्दी - अंग्रेजी पद्यानुवाद, प्राकृत गाथाओं तथा संस्कृतछायाश्लोकों के रोमन लिप्यांतरण व उनके आंग्लभाषानुवाद तथा यथावसर व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ देने का श्रमसाध्य कार्य संपादन किया। कुछ उनकी व्यस्तताऍ व कुछ उनका प्रमाद ही रहा कि यह कार्य इतने विलम्ब से पूर्ण हुवा । हेमलताजी ने तो अपना कार्य मई, २००४ में ही पूर्ण कर लिया था ।
कार्य पूर्ण होने के संतोष के साथ ही हमें अपनी न्यूनताओं का भी अहसास है। यह एक दार्शनिक ग्रंथ है जिसमें श्रीमज्जिनेश्वरसूरि ने विभिन्न दार्शनिक मतों को पूर्वपक्ष में रखकर उनका युक्तितः निराकरण कर स्वमत का सयुक्ति प्रतिपादन किया है। ऐसे गूढ़ ग्रंथ के अनुवाद में हम जैसे स्वल्पज्ञों के लिये सर्वत्र कठिनाई व कहीं-कहीं त्रुटियाँ होना भी स्वाभाविक है तथा इसके लिये हम विज्ञजनों से क्षमायाचनासह विनम्र विनंति करते हैं कि हमें अपनी त्रुटियों को दूर करने का अवसर प्रदान करने के लिये ही वे अपने अमूल्य सुझाव भेजने में झिझक का अनुभव न करें, तो ही ज्ञान के पक्ष में होगा ।
अंत में एक बार फिर हम उन सभी ज्ञात-अज्ञात विद्वानों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं जिनसे हमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहायता व मार्गदर्शन मिला है ।
प्रकाशक, श्री विमल - सुदर्शन - चन्द्र पारमार्थिक ट्रस्ट, उदयपुर; श्री गुजराती जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ, कोलकाता व शुभ संकल्प, उदयपुर व मे. चौधरी ऑफसेट प्रा. लि, उदयपुर के भी हम आभारी हैं जिन्होंने क्रमशः इस पुस्तक का प्रकाशन, अर्थ सहयोग, सुरूप कम्पोजिंग - नियोजन व सुंदर मुद्रण अल्पकाल में ही करके इसे वर्तमान स्वरूप दिया है ।
सुज्ञेषु किं बहुना जल्पितव्यं ?
हेमलता बोलिया दलपतसिंह बया 'श्रेयस'
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