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पंचलिंगीप्रकरणम्
स्वकथ्य
हमें इस ग्रंथ पर कार्य करने की प्रेरणा डॉ. कर्नल बया के खरतर
गच्छ की साध्वीजी श्री नीलांजनाश्रीजी के संपर्क में आने से मिली। वे इस ग्रंथ के दार्शनिक अध्ययन विषय पर विद्या-वाचस्पति उपाधि के लिये शोधकार्य करने का मानस बना रहीं थीं किंतु इसका सम्यक् हिन्दी रूपान्तरण उपलब्ध नहीं हो पाने की वजह से उनका कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा था। काफी प्रयत्न करने पर भी उन्हें जब इस समस्या का कोई हल नहीं मिला तो उन्होंने तो अन्य विषय चुन लिया किंतु वे उन्हें एक प्रेरणा दे गई कि क्यों न इस ग्रंथ का एक हिन्दी-अंग्रेजी संस्करण तैयार किया जाय जिससे अन्य किसी जिज्ञासु या शोधार्थी को इस प्रकार निराश न होना पड़े? अतः हम पहला आभार साध्वीजी श्री नीलांजनाश्रीजी के प्रति प्रकट करते हैं।
__ कर्नल बया संस्कृत का स्वल्प ज्ञान रखते हैं किंतु इस प्रकार के दर्शन ग्रंथ पर कार्य करने लायक दक्षता उनमें नहीं थी, अतः उन्होंने डॉ. बोलिया के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि यदि वे संस्कृत छाया व हिंदी अनुवाद का कार्य हाथ में लें तो यह कार्य सम्पन्न हो सकता है। डॉ. बोलिया ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और हम एक टीम बन गए।
__एक टीम के तोर पर ही हमनें अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार कार्य का बंटवारा कर लिया। हेमलता जी ने प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छाया बनाने व उनका हिन्दी अनुवाद करने का दुरूह कार्य किया जिसे उन्होंने अत्यंत योग्यतापूर्वक पूर्ण किया। इस कार्य में उन्होंने 'खलु', 'नु' आदि कुछ अव्ययों का प्रयोग छन्दपूर्ति के लिये करते हुए भी इस बात का पूरा ध्यान रखा कि मूल ग्रंथकार द्वारा नियोजित अर्थ की हानि न हो तथापि सुधिजन स्वप्रज्ञा से अर्थ ग्रहण करें। इस कार्य में उन्हें पूज्या साध्वीजी मेवाड़-मालव ज्योति श्री चन्द्रकलाश्रीजी म. का आशीर्वाद व मार्गदर्शन मिला जिसके लिये लेखकद्वय उनके प्रति नतमस्तक हैं। हम साध्वीजी श्री मुक्तिप्रियाजी की सुशिष्या साध्वीजी श्री मुदितप्रियाजी व साध्वीजी श्री हर्षप्रियाजी के भी आभारी हैं जिन्होंने प्रारंभ में ही हेमलताजी