Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 13
________________ ( १४ ) P बेशना को सार्वजनिकता श्रमण संस्कृति सदा से मनुष्य जाति की एकरूपता पर जोर देती आ रही है। उसकी दृष्टि में मानव समाज को टुकड़ों में विभक्त कर डालना, किसी भी प्रकार के कृत्रिम साधनों से उसमें भेदभाव की सृष्टि करना, न केवल अवास्तविक है वरन मानव समाज के विकास के लिए भी अतीव हानिकारक है। ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि का भेद हम अपनी सामाजिक सुविधाओं के लिए करें यह एक बात है और उनमें प्रकृति मेद की कल्पना करके उनको आध्यात्मिकता पर उसका प्रभाव डालना दूसरी बात है। इसे श्रमण-संस्कृति नहीं बनी। यही कारण है कि भगवान महावीर के उपदेश नीच ऊंच, ब्राह्मण-अब्राह्मण, सब के लिए समान हैं । उनका उपदेश श्रवण करने के लिए सभी श्रेणियों के मनुष्य बिना किसी भेदभाव के उनकी सेवा में उपस्थित होते थे और अस्पर्म समझें जाने वाले चाण्डालों को भी महावीर के शासन में यह गौरवपूर्ण पद प्राप्त हो सकता था जो किसी ब्राह्मण को जैन शास्त्रों में ऐसे अनेक उदाहरण अब भी मौजूद है जिनसे हमारे कथन की अक्षरशः पुष्टि होती है । E भगवान महावीर का अनुयायीवर्ग आज संसर्ग दोष से अपने आराध्यदेव की इस मौलिक कल्पना को भूल पा रहा है, पर युग उसे जगा रहा है। हमारा कर्त्तव्य है कि हम भगवान का दिव्य संदेश प्राणी मात्र के कानों तक पहुंचायें । सार्वकालिकत्ता भगवान् राश थे। उनके उपदेश देशकाल आदि की सीमाओं से घिरे हुए नहीं हैं। वे सर्वकालीन है, सार्वदेशिक हैं, सार्व है । संसार ने जितने अंशों में उन्हें मुलाने का प्रयास किया उतने ही अंशों में उसे प्रकृतिप्रदत्त प्रायश्चित्त करना पड़ा है। अधिक विवेचन की आवश्यकता नहीं- हम देख सकते हैं कि आज के युग में जो विकट समस्याएँ हमारे सामने उपस्थित है, हम जिस भौतिकता के विध्वंसमार्ग पर चले जा रहे हैं, उनके प्रति विद्वानों को असंतोष पैदा हो रहा है। आखिर वे फिर जमाने को महावीर के युग में मोड़ ले जाना चाहते हैं । सारा संसार रक्तपात से भयभीत होकर अहमादेवी के प्रसादमय अंक में विश्राम लेने को उत्सुक हो रहा है । जीवन को संयमशील और बाडम्बरहीन बनाने की फिक्र कर रहा है। नीच ॐच की काल्पनिक दीवारों को तोड़ने के लिए उतारू हो गया है। यही महावीर प्रदर्शित मार्ग है, जिस पर चले बिना मानव समूह का कल्याण नहीं ।

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