Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 11
________________ ( १२ ) से भी घृणा करता है ऐसे चाण्डाल जातीय हरिकेशी को परमादरणीय और पूज्य पद पर प्रतिष्ठित करने वाला कौन है ? प्रमव जैसे भयंकर चोर की आत्मा का निस्तार करके उसे भगवान महावीर का उत्तराधिकारी बनाने का सामर्थ्य किसमें था ? इन सब का उत्तर एक ही है और पाठक उसे समझ गए हैं। वास्तव में निर्ग्रन्थ-प्रवचन पतित-पावन है, अपारण-शरण है, अनाथों का नाथ है, दोनों का बन्धु है और नारकियों को भी देव बनाने वाला है । वह स्पष्ट कहता है अपवित्रः पवित्रो वा तुहियतो सुस्थितोऽपि वा । यः स्मरेत्परमात्मानम् स वाह्याभ्यन्तरे शुचिः ॥ जिन मुमुक्षु महर्षियों ने आरम हित के पथ का अन्वेषण किया है उन्हें नियंन्ध प्रवचन की प्रशांत छाया का ही अन्त में आश्रय लेना पड़ा है। ऐसे ही महर्षियों ने निर्ग्रन्थ-प्रवचन की यथार्थता, हितकरता और शान्ति-संतोषप्रदायकता का गहरा अनुभव करने के बाद जो उद्गार निकाले हैं वे वास्तव में उचित ही हैं और यदि हम चाहें तो उनके अनुभवों का लाभ उठाकर अपना पथ प्रशस्त बना सकते हैं। ⭑

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