Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 10
________________ ( ११ ) हम पहले ही कह चुके हैं कि निर्ग्रयों का प्रवचन किसी भी प्रकार की सीमाओं से आबद्ध नहीं है। यही कारण है कि वह ऐसी व्यापक विधियों का विधान करता है जो आध्यात्मिक दृष्टि से तो अत्युत्तम है ही, साथ ही उन विधानों में से इहलौकिक --- सामाजिक सुव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम व्यवहारोपयोगी नियम भी निकलते हैं । संयम, त्याग, निष्परिग्रहता ( और श्रावकों के लिए परिग्रहपरिमाण) अनेकान्तवाद और कर्मादानों की त्याज्यता प्रभुति ऐसी ही कुछ विधियाँ हैं, जिनके न अपनाने के कारण आज समाज में भीषण विशृङ्खलता दृष्टिगोचर हो रही है । निर्ग्रन्थों ने जिस मूल आशय से इन बातों का विधान किया है उस आशय को सम्मुख रखकर यदि सामाजिक विधानों की रचना की जाये तो समाज फिर हरा-भरा सम्पन्न सन्तुष्ट और सुखमय बन सकता है । आध्यात्मिक दृष्टि से तो इन विधानों का महत्व है ही, पर सामाजिक दृष्टि से भी इनका उससे कम महत्व नहीं है । संयम, उस मनोवृति के निरोध करने का अद्वितीय उपाय है जिससे प्रेरित होकर समर्थ जन आमोद-प्रमोद में समाज की सम्पत्ति को स्वाहा करते हैं । त्याग एक प्रकार के बंटवारे का रूपान्तर है। परिग्रहपरिमाण और भोगोपभोगपरिमाण, प्रकार के आर्थिक साम्यवाद का आदर्श हमारे सामने पेश करते हैं; जिनके लिए आज संसार का बहुत सा भाग पागल हो रहा है। विभिन्न नामों के आवरण में छिपा हुआ यह सिद्धान्त ही एक प्रकार का साम्यवाद है । यहाँ पर इस विषय को कुछ अधिक लिखने का अवसर नहीं है तथापि निर्ग्रन्थ-प्रत्रवन समाज को एक बड़े और आदर्श कुटुम्ब की कोटि में रखता है, यह स्पष्ट है । इसी प्रकार अनेकान्तवाद, मतमतान्तरों की मारामारी से मुक्त होने का मार्ग निर्देश करता है और निग्रंथों की अहिंसा के विषय में कुछ कहना तो पिष्टपेषण ही है । अस्तु । एक निग्रंथ प्रवचन की तासीर उन्नत बनाना है । नीच से नीच, पतित से पतित, और पापी से पापी भी यदि निर्ग्रन्थ-प्रवचन की शरण में आता है तो उसे भी वह अलौकिक आलोक दिखलाता है, उसे सन्मार्ग दिखलाता है और जैसे धाय माता गन्दे बालक को नहला बुलाकर साफ-सुथरा कर देती है उसी प्रकार यह मलीन से मलीन आत्मा के मैल को हटाकर उसे शुद्ध-विशुद्ध कर देता है। हिंसा की प्रतिमूर्ति, भयंकर हत्यारे अर्जुनमाली का उद्धार करने वाला कौन था ? अंजन जैसे चोरों को किसने तारा है ? लोक जिसकी परछाई

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