Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 12
________________ निर्ग्रन्थ-प्रवचन : एक परिचय जिन-वेशना- आर्यावर्त अज्ञात अतीत काल से ऐसे महापुरुषों को उत्पन्न करता रहा है, जिन्होंने इस आनि-च्याधि-उपाधि के जाल में जकड़े हुए मानवसमूह को सत्पथ प्रदर्शित किया है। दीर्घ तपस्वी श्रमण भगवान महावीर ऐसे ही महान् आत्माओं में से एक थे । माज से लगभग २५०० वर्ष पूर्व, जब भारतवर्ष अपनी पुरातन आध्यास्मिकता के मार्ग से विमुख हो गया था, वाह्य कर्मकाण्ड की उपासना के भार से लद रहा था और प्रेम, दया, सहानुभूति, समभाव, क्षमा आदि सात्त्विक वत्तियां जब जीवन में से किनारा काट रही थीं, तब भगवान महावीर ने आगे आकर भारतीय जीवन में एक नई क्रान्ति की थी। भगवान महावीर ने कोरे उपदेशों से यह क्रान्ति की हो, सो बात नहीं है । उपदेश-मात्र रो कभी कोई महान क्रान्ति होती भी नहीं है। भगवान महावीर राजपुत्र थे। उन्हें संसार में प्राप्त हो सकने वाली सुख-सामग्री सब प्राप्त थी। मगर उन्होंने विश्व के उद्धार के हेतु समस्त भोगोपभोगों को तिनके की तरह त्याग कर अरण्य की शरण ग्रहण की। तीय तपश्चरण के पश्चात् उन्हें जो दिव्य ज्योति मिली उसमें चराचर विश्व अपने वास्तविक स्वरूप में प्रतिभासित होने लगा। तब उन्होंने इस भूले-मटके संसार को कल्याण का प्रशस्त मार्ग प्रदर्शित किया। भगवान महावीर के जीवन से हमें इस महत्वपूर्ण बात का पता चलता है कि उन्होंने अपने उपदेश में जो कुछ प्रतिपावन किया है वह दीवं अनुभव और अभ्रान्त ज्ञान की कसौटी पर कस कर, ख़ब जांच-पड़ताल कर कहा है। अतएव उनके उपदेशों में स्पष्टता है, असंदिग्धता है, वास्तविकता है।

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