Book Title: Nirgrantha Pravachan Author(s): Chauthmal Maharaj Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar View full book textPage 9
________________ इन्हीं पूर्वोक्त सर्वम-सर्वदर्शी, वीतराग और हितोपदेशक महानुभावों को 'निगांठ', 'निगाथ' या 'निप्रस्थ' कहते हैं । भौतिक या आधिभौतिक परिग्रह की दुर्भद्य ग्रंथि को जिन्होंने भेद डाला हो, जिनकी आत्मा पर अज्ञान या कषाय की कालिमा लेशमात्र भी नहीं रही हो, इसी कारण जो स्फटिक मणि से भी अधिक स्वच्छ हो गई हो, वे हो 'निर्गन्य' पद को प्राप्त करते हैं । प्रत्येक काल में, प्रत्येक देश में और प्रत्येक परिस्थिति में निर्गन्थों का ही उपदेश मफल और हितकारक हो सकता है। यह उपदेश सुमेरु की तरह अटल, हिमालय की तरह संताप-निवारक-शांतिप्रदायक, सूर्य की तरह तेजस्वी और अशानान्धकार का हरण करने वाला, चन्द्रमा की तरह पीयूष-वर्षण करने वाला और आल्हादक, सुरतरु की तरह सकल संकल्पों का पूरक, विद्युत् की तरह प्रकाशमान और आकाश की भांति अनादि-अनन्त और असीम है। वह किसी देशविशेष या काल विशेष की सीमाओं में आबद्ध नहीं है । परिस्थितियां उसके पथ को प्रतिहत नहीं कर सकतीं। मनुष्य के द्वारा कल्पित कोई भी श्रेणी, वर्ण, जाति-पांति या वर्ग उसे विभक्त नहीं कर सकता । पुरुष हो या स्त्री, पशु हो या पक्षी, सभी प्राणियों की लिए वह सब समान है, सब अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार उस उपदेश का अनुसरण कर सकते हैं। संक्षेप में कहें तो यह काह सकते हैं कि निग्रंथों का प्रवचन सावं है, सार्वजनिक है, सार्वदेशिक है, सार्वकालिक है और सर्वार्थसाधक है। नियों का प्रवचन आध्यात्मिक विकास के क्रम और उसके साधनों की सम्पूर्ण और सूक्ष्म से सूक्ष्म व्याख्या हमारे सामने प्रस्तुत करता है। वात्मा क्या है ? भात्मा में कौन-कौन सी और कितनी शाक्सियाँ है ? प्रत्यक्ष दिखलाई देने वाली आत्माओं की विभिन्नता का क्या कारण है ? यह विभिन्नता किस प्रकार दूर की जा सकती है ? नारफी और देवता, मनुष्य और पशु आदि की आत्माओं में कोई मौलिक विशेषता है या वस्तुतः वे समान-पाक्तिशाली है? आत्मा की अधस्तम अवस्था क्या है ? आत्म-विकास की चरम सीमा कहाँ विश्नांत होती है? आत्मा के अतिरिक्त परमात्मा कोई भिन्न है या नहीं? यदि नहीं तो किन उपायों से, किन साधनाओं से आत्मा परमात्मपद पा सकता है? इत्यादि प्रश्नों का सरल, सुस्पष्ट और संतोषप्रद समाधान हमें निग्रंथ-प्रवचन में मिलता है ? इसी प्रकार जगत् क्या है ? यह अनादि है था सादि ? आदि गहन समस्याओं का निराकरण भी हम निग्रंथ प्रषचन में देख पाते हैं ।Page Navigation
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