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श्रद्धान्वित हो सकेंगे।
उस समय ही संयोग से पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने भी संघीय आवश्यकता को महसूस करते हुए कहा कि प्रकरण चतुष्टय पर पुनः नवीनता से कलम चले, जिसमें विवेचन के साथ विषय से संबंधित विस्तृत प्रश्नोत्तरी भी संलग्न हो । जीव विचार प्रकरण का कार्य उन्होंने बंधुमुनि मनितप्रभजी को सौंपा तो नवतत्त्व के लिये मुझे आदेश दिया । ___ 'आज्ञां गुरुणां ह्यविचारणीया' मैंने सर झुकाते हुए आदेश को स्वीकार कर लिया और इस प्रकार यह कृति आठ माह के गहन परिश्रम से तैयार हो गयी । मैं पूज्यप्रवर के प्रति विनम्रभाव से नतमस्तक हूँ, जिन्होंने मुझे प्रस्तुत कृति के लेखन-विवेचन का आदेश देकर मेरी लेखन-क्षमता को अनावृत्त किया ।
जिनका वात्सल्यमय अनुग्रह मेरे अंतर में प्राण ऊर्जा बनकर प्रवाहित होता है, जिनका ममतामय सान्निध्य जीवन में प्रत्येक कदम पर मेरा मार्गदर्शन करता है, उन परम पूजनीया, श्रद्धेया, गुरुवर्या डॉ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. के श्रीचरणों में मेरी अगणित वंदनाएँ समर्पित हैं । प्रस्तुत कृति का निर्माण उन्हीं की उष्माभरी प्रेरणा का परिणाम है। अन्यथा मुझमें वह क्षमता कहाँ ? उनका अमीभरा वरदहस्त सदा मुझे भीगा भीगा रखे, यही एक मात्र काम्य है।
मैं कैसे विस्मृत कर सकती हूँ मेरे प्रिय, लघुवयी अनुज मुनि मनितप्रभजी को, जिन्होंने अपने हर कार्य में मुझे अपना सहभागी बनाया है तो मेरे हर लक्ष्य संपूर्ति में भी जो सदैव सहयोगी रहे हैं । प्रस्तुत सर्जन से भी वे अछूते कैसे रहते ? उनका महत्त्वपूर्ण सहकार उपलब्ध हुआ है परंतु इसके लिये कृतज्ञता-ज्ञापन कर मैं अपनी आत्मीयता एवं अभिन्नता पर प्रश्नचिह्न ही लगाऊंगी । वे मेरे अपने हैं और उनका सहकार मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है । असीम मंगलकामनाएँ हैं बंधुमुनि के लिये । ___ परम आत्मीय, सहज-सरल व्यक्तित्व के धनी विद्वद्वर्य श्री नरेंद्रभाई
श्री नवतत्त्व प्रकरण