________________
भी किया है। श्री हर्षवर्धनगणि, पार्श्वचन्द्र आदि के द्वारा प्राकृत भाषा में रचित नवतत्त्व बालावबोध भी महत्त्वपूर्ण है, श्री मानविजयजी श्री मणिरत्नसूरि ने नवतत्त्व पर टबों का भी सर्जन किया है। और भी अनेक अज्ञातकर्तृक बालावबोध तथा टबे प्राचीन ज्ञानभंडारों में उपलब्ध होते हैं । गुजराती भाषा में भी कई श्रुत-साधक महापुरुषों ने नवतत्त्व पर रास, जोड, चौपाई, स्तवन आदि विविध विधाओं में अपनी कलम चलाई है। नवतत्त्व की तर्ज पर सप्त तत्त्व प्रकरण की रचना भी श्री हेमचंद्रसूरि व देवानन्दसूरि द्वारा की गयी है। इनके अतिरिक्त नवतत्त्व पर रचित और अनेक ग्रंथ हैं, जिनका यहाँ नामोल्लेख करना विस्तार भय से संभव नहीं है। __ प्रस्तुत नवतत्त्व प्रकरण चिरंतनाचार्य द्वारा रचित है। कहीं - कहीं पर इसके रचनाकार के रुप में पार्श्वनाथ परम्परा के ४४वें पट्टधर देवगुप्ताचार्य का उल्लेख भी मिलता है।
नवतत्त्व प्रकरण अपने आप में एक विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। यह लघुकाय होने पर भी जैनदर्शन की संपूर्ण विषय-वस्तु अपने भीतर समेटे हुए हैं । तत्त्व हो या द्रव्य, कर्म हो या मार्गणा, सभी का विवेचन इसमें पूर्ण प्रासंगिक रुप से हुआ है । यह ग्रंथ अपने आप में एक ऐसा संपूर्ण शास्त्र है, जिसे तत्त्वशास्त्र कहा जाता है तो दर्शनशास्त्र, कर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र कहने में भी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। नौ-तत्त्वों का विवेच्य ग्रंथ होने से यह तत्त्वशास्त्र है। जीव तथा अजीव, इन दो तत्त्वों में षद्रव्य का विवेचन होने से यह दर्शन शास्त्र भी है। कर्म के स्वरुप, लक्षण, स्थिति, बंध के प्रकार तथा मूल व उत्तर प्रकृतियों का सांगोपांग विवेचन होने से यह कर्मशास्त्र भी है। समिति, गुप्नि, परीषह, यतिधर्म, भावना, चारित्र, तप आदि आत्मा को शुद्ध-विशुद्ध करने वाले विविध उपायों का विश्लेषण होने से यह नीतिशास्त्र अथवा धर्मशास्त्र भी है।
__ जब मैंने अपने स्वाध्याय के अंतर्गत इस विशिष्ट ग्रंथ का पारायण किया तो इस ग्रंथ के प्रति मेरे हृदय में एक अनूठी श्रद्धा का जन्म हुआ । मुझे लगा, अगर इस ग्रंथ को सरल, सहज भाषा में प्रस्तुत किया जाय तो तत्त्वजिज्ञासु इसके माध्यम से अवश्य ही तत्त्व के प्रति और अधिक श्री नवतत्त्व प्रकरण