Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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इस प्रथम राजपरिचय के समय आचार्य हेमचन्द्र की प्रायु ४६ वर्ष के लगभग बी । किसी अन्य अवसर पर राजा जयसिंह सिद्धराज 'अणहिल पट्टन' के राजमार्ग पर हाथी पर चढ़े हुए जा रहे थे। दूसरी श्रोर से श्राचार्य हेमचन्द्र सूरि पैदल भा रहे थे। मार्ग सकरा था । राजा जयसिंह सिद्धराज ने हाथी रुकवा दिया। इस पर प्राचार्य हेमचन्द्र ने उनको एक ओर से निःशंक हाथी निकाल ले जाने का सुझाव देते हुए तत्काल बना कर निम्न श्लोक पढ़ा
" कारय प्रसरं सिद्ध ! हस्तिराजमशङ्कितम् । त्रस्यन्तु दिग्गजाः किन्तभूयस्त्वयैवोद्भूता यतः ॥।”
हेमचन्द्राचार्य को साहित्यसेवा -
उपर्युक्त विवरण के अनुसार सन् ११३६ में मालव- विजयोत्सव के समारोह के अवसर पर प्राचार्य हेमचन्द्र का भरण हिल पट्टन' के अधीश्वर जयसिंह सिद्धराज के साथ प्रथम परिचय हुधा । उसके बाद सन् १९४६ में जयसिंह की समाप्ति हो गई। इस प्रकार सात वर्ष तक इन दोनों का साथ रहा। इन सात वर्षों के थोड़े से काल में राजा जयसिंह के प्रोत्साहन और प्रेरणा से, इन्होंने बहुत बड़े और बहुत महत्त्वपूर्ण साहित्य की रचना की है। व्याकररण, न्याय, साहित्य, छन्दःशास्त्र प्रादि सभी विषयों पर उनके प्रौढ़ एवं प्रत्यन्त उच्च कोटि के ग्रन्थ पाए जाते हैं : १] सिद्ध-हेमशब्दानुशासन, २ काव्यानुशासन ३ छन्दोऽनुशासन, ४ वादानुशासन, ५ धातुपारायण, ६ द्वयाश्रय महाकाव्य, ७ देशीनाममालाभिधान चिन्तामरिण ८ मनेकार्थं संग्रह निघण्टु, ६ सप्त सन्धान महाकाव्य, १० त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित, ११ परिशिष्ट पर्व, १२ योगशास्त्र, १३ वीतराग स्तोत्र १४ द्वात्रिंशिका द्वयस्रीति, १५ प्रमाणमीमांसा प्रादि उनके लिखे हुए ग्रन्थों की सूची बहुत लम्बी है । और इनके प्रतिपाद्य विषयों का क्षेत्र बड़ा व्यापक है । इतने व्यापकं भर विविध विषयों पर इतनी उच्चकोटि के ग्रन्थ लिख कर उन्होंने सचमुच अपने प्राचार्यत्व को चरितार्थ किया भोर संस्कृत साहित्य की महती सेवा की है।
प्राचार्य हेमचन्द्र के ये सभी ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । किन्तु इनमें 'सिद्ध-हेमशब्दानुशासनम्' का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह व्याकरण शास्त्र का ग्रन्थ है यह बात उसके 'शब्दानुशासन' नाम से ही प्रतीत होती है, किन्तु उसके नामकरण में सिद्धहेम पद जोड़ कर आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी और राजा जयसिंह सिद्धराज की मित्रता को अमर कर दिया है। इस नामकरण में 'सिद्ध' पद राजा 'जयसिंह सिद्धराज' का बोधक है और 'हेम' पद प्राचार्य हेमचन्द्र के नाम का सूचक है । सिद्धराज जयसिंह की प्रेरणा से प्राचार्य हेमचन्द्र ने इस शब्दानुशासन की रचना की है इस बात को प्राचार्य हेमचन्द्र ने इस नामकरण द्वारा सूचित किया है। उनका 'त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित' एक विशाल पुराण ग्रन्थ है । मौर उनका 'परिशिष्ट-पर्व' भारत के प्राचीन इतिहास के अनुसन्धान कार्य में उपयोगी हो सकता है। संस्कृत प्रौर प्राकृत दोनों भाषात्रों में लिखा गया 'द्वद्याश्रय महाकाव्य' एक उत्कृष्ट महाकाव्य है । 'प्रमारण मीमांसा' उनका दर्शन ग्रन्थ है। इसमें जैन दर्शन के अनुसार प्रमाणों का विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ प्रपूर्ण ही उपलब्ध होता है । यह ग्रन्थ सूत्र रूप में लिखा गया है। सूत्रों के ऊपर उनकी अपनी ही बनाई हुई स्वोपज्ञ वृत्ति भी पाई जाती है। 'योगशास्त्र' में जैन दर्शन के साथ योग-प्रक्रिया का समन्वय करने का बन किया गया है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने सभी विषयों पर ग्रन्थ लिख कर अपने अनुयायियों के संस्कृत अध्ययन के लिए एक स्वतंत्र ग्रन्य- माला की रचना कर दी है। उनके धनुयायी विद्याचियों को पढ़ने पढ़ाने के लिए सभी प्रमुख विषयों पर अपने स्वतन्त्र ग्रन्थ मिल
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