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यह कथानक आठ से अधिक अर्थात् बाइस सर्गों में व्याप्त है। कोई सर्ग ऐसा छोटा तो नहीं है, परन्तु एक-दो सर्ग दीर्घ अवश्य हैं, भले ही नातिदीर्घ हो; जैसे दो सौ बाईस श्लोकों का सप्तदश सर्ग । साँत में भाविकथा का आभास प्रायः मिल जाया करता है ।
(२) पात्र-नैषधीयचरित्र' के प्रधानपात्र नल और दमयन्ती हैं । प्रतिनायक रूप में हैं इंद्र, यम, अग्नि, वरुण, जो आगे चलकर नल के सहायक हो जाते है। वस्तुतः 'नलोपाख्यान' का प्रतिनायक तो कलि है, जिसका उपयोग ही नैषधीयचरित में अवाञ्छित रहा है । केवल सत्रहवें सर्ग में उसका रोष दिखाया जासका, जिसमें चार्वाकदर्शन का दर्शन तो हो जाता है, शेष के लिए अवसर ही नहीं आया। शेष सामान्य पात्र हैं विदर्भनरेश भीम, स्वयंवर में एकत्र नरेश और देवी सरस्वती तथा दमयन्ती की सखियाँ। इन सबकी प्रसंगतः चर्चा आ गयी है। भीम एक हितचिन्तक पिता हैं, देवी सरस्वती वाग्देवी हैं, जिन्होंने स्वयंवर में दमयन्ती का दिशा-निर्देश किया । कला आदि सखियां राजनंदिनी की उपयुक्त परिचारिकाएँ हैं, राजमर्यादा को समझने वाली। एक विशिष्ट पात्र है पक्षी हंस, जो एक कुशल दूत का कार्य करता है और जिसकी कथा के माध्यम से करुणप्रसंग की मार्मिक अभिव्यक्ति हो गयी है। इस प्रकार 'नैषध' में मानव-मानवी, देव-देवी और मानवेतर प्राणी प्रकार के पात्र हैं, जो यद्यपि संख्या में थोड़े हैं, तथापि गुणों में प्रभूत हैं ।
( क ) नल-परम्परा के अनुसार नल सवंशोत्पन्न कुलीन क्षत्रिय है, जिसे पुगणादि में पुण्यश्लोक कहा गया है, जो प्रातः स्मरणीयों में प्रथम है-'पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः । पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको जनार्दनः ॥' औषधीयचरित्र' के आरम्भ के तीस श्लोकों में नल का वर्णन किया गया है, जिनमें उसके रूप, गुण, समृद्धि, बल, वैभव, प्रभाव, श्री, शोभा, कांति, उदारता, वीरता, दानशीलता आदि का विस्तार से उद्घाटन किया गया है। वे चतुर्दश विद्याओं के ज्ञाता हैं, कलामर्मज्ञ हैं, 'महोज्ज्वल' हैं और 'महसा राशि' हैं। शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार वे "धीरोदात्त' नायक हैं- आत्मप्रशंसा की श्लाघा न करने वाले, क्षमावान् । अति गम्भीर, निन्दा-प्रशंसा, हर्ष-शोकादि से अप्रभावित, स्थिरमति, स्वाभि