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नैषधमहाकाव्यम् हिन्दी-जहाँ व्यापारियों द्वारा विक्रयार्थ हाट में फैलाये समस्त सांसारिक वस्तुजात ( सामान ) को प्राचीन काल में विष्णु के उदर में ( समाया विश्व ) मृकंडु के पुत्र माकंडेय के समान लोक-जन देखा करते हैं।
टिप्पणी-हाट में सब आवश्यक सामग्री प्राप्त होती थी, इसे पौराणिक कथा द्वारा स्पष्ट किया गया है। प्राचीन काल में मार्कण्डेय मुनि ने विष्णु के उदर में समग्र संसार देखा था। दर्शनीय-श्रीमदभागवत (१२.९) । विद्याधर के अनुसार उपमा और उदात्त, अलंकार ॥ ९१ ॥
सममेणमदैयदापणे तुलयन् सौरभलोभनिश्चलम् । पणिता न जनारवैरवैदपि कूजन्तमलिं मलीमसम् ॥ ९२ ॥
जीवातु-सममिति । यस्या नगर्या आपणे सौरभलोभनिश्चलं गन्धग्रहणनिष्पन्दं ततः क्रियया दुर्बोधमित्यर्थः । मलीमसं मलीनं सर्वाङ्गनीलमित्यर्थः । अन्यथा पीतमध्यस्याले: पीतिम्नव व्यवच्छेदात्, अतो गुणतोऽपि दुर्ग्रहमित्यर्थः । 'ज्योत्स्नातमिस्त्रे'--त्यादिना निपातः । अलि भृङ्गमेणमदः समं कस्तूरी मिः सह तुलयन् तोलयन् पणिता विक्रेता कूजन्तमपि जनानामारवैः कलकलैः नावैत, शब्दतोऽपि न ज्ञातवान् इत्यर्थः । इह निश्चलस्यालेः गुञ्जनं कविना प्रौढवादेनोक्तमित्यनुसन्धेयम् । अत्राले ल्यादेणमदोक्तेः सामान्यालङ्कारः । 'सामान्यं गुणसामान्ये यत्र वस्त्वन्तरकते' ति लक्षणात् । तेन भ्रान्तिमदलङ्कारो व्यज्यते ॥ ९२ ॥
अन्वयः-यदापणे सौरभलोमनिश्चलं मलीमसम् अलिम् एणमदः समं तुलयन् पणिता कूजन्तम् अपि जनारवैः न अवैत् ।
हिन्दी-जिस ( नगरी ) के हाट में सुगन्ध के अभिलाष में निश्चल काले भौंरे को एणमृग के मद ( कस्तूरी ) के साथ तोलता दुकानदार ( उसके ) गुजार करने पर भी जन-कोलाहल में पहिचान नहीं पाता था।
टिप्पणी-कस्तूरी के रंग का काला भौरा सुगन्ध से प्राकृष्ट हो निश्चल उस पर बैठा था, सो एक-सा रंग होने के कारण दुकानदार कस्तूरी के साथ भौंरे को भी तोल दिया, तब भौरा भनभनाने लगा, परन्तु जन-संकुल हाट में